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भक्त राजे
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- भगवतीसूत्र सटीक ( समिति वाला ) प्रथम भाग, श० ५, उ०
४, सूत्र १८८ पत्र २१९-२
दानशेखर की टीका भी इसी प्रकार है
:–
षडवर्षजातस्य तस्य प्रव्रजितत्वाद, श्राह - "छव्वरिसो पञ्चइयो निग्गंथं रोहऊण पावयणं' ति, एतदेवाश्चर्य अन्यथा वर्षाष्टकादारान्न दीक्षा स्यात
- दानशेखर की टीका पत्र ७३-१
साधारणतः ८ वर्ष की उम्र में दीक्षा होती है; पर ६ वर्ष की उम्र में अतिमुक्तक की दीक्षा आश्चर्य है ।
अतिमुक्तक के साधु- जीवन की एक घटना भगवतीसूत्र शतक ५ उसा ४ में आयी है। एक बार जब खूत्र वृष्टि हो रही थी, ( बड़ी शंका निवारण के लिए ) बगल में रजोहरण और पात्र लेकर अतिमुक्तक बाहर निकला । जाते हुए उसने पानी बहते देखा । उसने मिट्टी से पाल बाँधी और अपने काष्ठपात्र को डोंगी की तरह चलाना प्रारम्भ किया और कहने लगा―"यह मेरी नाव है !” और, इस प्रकार वह खेलने लगा । उसे इस प्रकार खेलते स्थविरों ने देखा और भगवान् के पास जाकर पूछा - "भगवन् ! अतिमुक्तक भगवान् का शिष्य है । वह अतिमुक्तक कितने भवों के बाद सिद्ध होगा और सब दुःखों का विनाश करेगा ?”
इस पर भगवान् महावीर ने कहा - " मेरा शिष्य अतिमुक्तक इस भव को पूरा करने के पश्चात् सिद्ध होगा । तुम लोग उसकी निंदा मत करो और उस पर मत हँसो । कुमार अतिमुक्तक सब दुःखों का नाश करने वाला है और इस बार शरीर त्यागने के बाद पुनः शरीर नहीं धारण करेगा ।"
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