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तीर्थकर महावीर भगवान् की बात सुनकर सब स्थविर अतिमुक्तक की सार-सँभाल रखने लगे और उनकी सेवा करने लगे।'
अपने साधु-जीवन में अतिमुक्तक ने सामायिक आदि का अध्ययन किया । कई वर्षों तक साधु-जीवन व्यतीत करने के पश्चात् गुणरत्न-तपस्या करने के पश्चात् विपुल-पर्वत पर अतिमुक्तक ने सिद्धि प्राप्त की।
विजय
- मृगगाम-नगर के उत्तरपूर्व-दिशा में चंदनपादप-नामक उद्यान था। उस उद्यान में सुधर्म-नामक यक्ष का यक्षायतन था । उस ग्राम में विजयनामक राजा था । मृगा-नामकी उस राजा की रानी थी।
एक बार भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए मृगग्राम पहुँचे। उस समय विजय राजा भी कूणिक के समान उनकी वंदना करने गया।
विजयमित्र' वर्द्धमानपुर-नामक नगर था। जिसमें विजयवर्द्धमान-नामक उद्यान था । उसमें मणिभद्र-नामक यक्ष का मंदिर था ।
उस नगर में विजयमित्र नामक राजा था।
१-भगवतीसूत्र सटीक ( समिति वाला ) श० ५, उ० ४, पत्र २१९।१-२ (प्रथम भाग) __ २–अंतगडदसाओ एन० वी० वैद्य-सम्पादित, पृष्ठ ३५
३–विपाकसूत्र (पी० एल० वैद्य-सम्पादित ) श्रु० १, अ० १, पृष्ठ ४-५
४-विपाकसूत्र (पी० एल० वैद्य-सम्पादित ) श्रु० १, अ० १०, पृष्ठ ७२
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