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भक्त राजे
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एक बार भगवान् परिवार के सहित विहार करते हुए पोलासपुर आये और श्रीवन - उद्यान में ठहरे ।
गौतम इन्द्रभूति पोलासपुर नगर में भिक्षा के लिए गये । उस समय स्नान करके षष्ठवर्षीय कुमार अतिमुक्तक लड़के-लड़कियों, बच्चों बच्चियों तथा युवक-युवतियों के साथ इन्द्रस्थान' पर खेल रहा था ।
कुमार अतिमुक्तक ने जब इन्द्रभूति को देखा तो उनके पास जाकर उसने पूछा - "आप कौन हैं ?" इस प्रश्न पर इन्द्रभूति ने उत्तर दिया"मैं निर्गथ- साधु हूँ और भिक्षा माँगने निकला हूँ ! यह उत्तर सुनकर अतिमुक्तक उन्हें अपने घर ले गया ।
गौतम इन्द्रभूति को देखकर अतिमुक्तक की माता महादेवी श्री अति प्रसन्न हुई और तीन बार उनकी परिक्रमा वंदना करके भिक्षा में उन्हें पर्याप्त भोजन दिया ।
अतिमुक्तक ने गौतम स्वामी से पूछा- आप ठहरे कहाँ हैं ?" इस पर इन्द्रभूति ने उसे बताया - " मेरे धर्माचार्य (महावीर स्वामी) पोलासपुर नगर के बाहर श्रीवन में ठहरे हैं ।” अतिमुक्तक भी भगवान् का धर्मोपदेश सुनने गया और भगवान् के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर उसने अपने माता-पिता से अनुमति लेकर साधु होने का निश्चय किया ।
वहाँ से लौट कर अतिमुक्तक घर आया और उसने अपने माता पिता से अपना विचार प्रकट किया। इस पर उसके माता-पिता ने कहा" वत्स ! तुम अभी बच्चे हो । तुम धर्म के सम्बन्ध में क्या जानते हो ? इस पर अतिमुक्तक ने कहा - " मैं जो जानता हूँ, उसे मैं नहीं जानता और जिसे मैं नहीं जानता उसे मैं जानता हूँ ।" इस पर उसके माता-पिता
१ - यन्त्रेन्यष्टिरूव कियत
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