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________________ ६०४ तीर्थकर-महावीर "भगवान् ! इस समय प्रसन्नचन्द्र मुनि पूर्ण ध्यानावस्था में हैं। यदि इस समय उनका निधन हो तो किस गति में जायें ?" यह सुनकर भगवान् बोले-"सातवें नरक में जायेंगे !" भगवान् के मुख से ऐसा सुनकर श्रेणिक को विचार उठा कि, साधु को तो नरक होता नहीं। प्रभु की कही बात बराबर मेरी समझ में नहीं आयी।" थोड़ी देर बाद फिर श्रेणिक ने पूछा-'हे भगवन् ! यदि प्रसन्नचन्द्र का इस समय देहावसान हो तो वे किस गति को प्राप्त करेंगे ?' भगवान् ने उत्तर दिया-"सर्वार्थसिद्ध विमान पर जायेंगे।” यह सुनकर श्रेणिक ने पूछा-"भगवन् , क्षण भर के अन्तर में आपने यह भिन्न-भिन्न बातें कैसे कहीं ?" भगवान् ने उत्तर दिया-"ध्यान के भेद से मुनि की स्थिति दो प्रकार की थी। इसी कारण मैंने दो बातें कहीं। पहले दुर्मुख की बात से प्रसन्नचन्द्र क्रुद्ध हो गये थे और अपने मंत्रियों आदि से मन में युद्ध कर रहे थे । उसी समय आपने वंदना की । उस समय वह नरक में जाने योग्य थे। उसके बाद उनका ध्यान पुनः व्रत की ओर गया और वे पश्चाताप करने लगे । इससे वह सर्वार्थसिद्ध के योग्य हो गये। आपने दूसरा प्रश्न इसी समय पूछा था ।" इतने में प्रसन्नचन्द्र के निकट देवदुन्दुभी आदि के स्वर सुनायी पड़े। उसे सुनकर श्रेणिक ने पूछा-"भगवन् ! यह क्या हुआ ।' भगवान् ने उत्तर दिया--"प्रसन्नचन्द्र को केवलज्ञान हो गया ? यह देवताओं के हर्ष का द्योतन करने वाली दुन्दुभी का नाद है । __ श्रेणिक के पूछने पर भगवान् ने प्रसन्नचन्द्र के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथा कही १–परिशिष्ट-पर्व, याकोबी-सम्पादित, द्वितीय संस्करण, सर्ग १, श्लोक ९२-१२८ पृष्ठ ९-१२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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