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तीर्थंकर महावीर
राजा प्रद्योत सदा द्विमुख के दरबार में जाता और द्विमुख उसे आदरपूर्वक अर्द्धआसन पर बैठाता ।
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एक बार प्रद्योत ने द्विमुख की पुत्री मदनमंजरी को देख लिया और उसके विरह में प्रद्योत पीला पड़ गया । द्विमुख राजा के बहुत पूछने पर प्रद्योत ने मदनमंजरी से विवाह करने का प्रस्ताव किया और कहा" मदनमंजरी न मिली तो मैं अग्नि में कूद कर आत्महत्या कर लूँगा ।"
इस प्रस्ताव पर द्विमुख ने अपनी पुत्री का विवाह प्रद्योत से कर दिया । इन युद्धों के अतिरिक्त चंद्रप्रद्योत के तक्षशिला के राजा पुष्करसाती से युद्ध करने का उल्लेख गुणाढ्य ने किया है ।
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प्रसन्नचन्द्र
एक बार भगवान् विहार करते हुए पोतनपुर नामक नगर में पधारे और नगर से बाहर मनोरम - नामक उद्यान में ठहरे। उनके आने का
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१.
— उत्तराध्ययन ९ - वाँ अध्याय नेमिचंद्र की टीका १३५-२-१३६-२ २ – पोलिटिकल हिस्ट्री आव इंडिया, ५ - वाँ संस्करण, पृष्ठ २०४ | ३—त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ९, श्लोक २१-५०
पत्र ११९-१ – १२०-१
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४ - बौद्ध ग्रंथों में पोतन नगर अस्सक की राजधानी बतायी गयी है । जातकों से ज्ञात होता है कि पहले अस्सक और दंतपुर के राजाओं में परस्पर युद्ध हुआ करता था । यह पोतन कभी काशी राज्य का अंग रह चुका था । वर्तमान पैठन की पहचान पोतन से की जाती है । —ज्यागरैफी आव अर्ली बुद्धिज्मा, पृष्ठ २१; संयुक्तनिकाय हिन्दी अनुवाद, भूमिका पृष्ठ ७ ।
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