SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 669
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भक्त राजे ६०१ (भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति, पत्र १७७ - १) शुद्ध चित्त से जैन-धर्म का पालन करने लगा । चंडप्रद्योत और पांचाल चंप्रद्योत के समय में पांचाल देश की राजधानी काम्पिल्य में यवनामक राजा राज्य करता था । चित्रशाला बनवाते उसे एक रत्नजटित मुकुट मिला । उस मुकुट के दो मुख दिखलायी पड़ते । इस कारण, उस यव कहने लगे । एक बार उज्जयिनी नगरी का कोई दूत काम्पिल्यपुरी में आया । वहाँ से लौटकर उसने चंडप्रद्योत को बताया कि, यव राजा के पास एक मुकुट है। उसके प्रभाव से उसका दो मुख दिखलायी पड़ता है I उस मुकुट के लोभ में पड़कर चंडप्रद्योत ने दुम्मुह राजा के पास दूत भेजा और कहलाया -- " या तो मुकुट मुझे दे दो नहीं तो लड़ने के लिए तैयार हो जाओ ।" इस पर द्विमुख ने कहादें तो मैं अवश्य मुकुट दे दूँगा ।" प्रद्योत के चारों रत्न माँग लिये । समय भूमि के अंदर धारण करने से उसके राजा को लोग द्विमुख Jain Education International "यदि चंडप्रद्योत मेरी माँगी चीज मुझे और, दूत के पूछने पर द्विमुख ने चंड दूत से समाचार सुनकर चतुरंगिणी सेना एकत्र करके चंडप्रद्योत सीमा पर पहुँच कर चंडप्रद्योत की सेना ने मगरव्यूह की रचना की । द्विमुख से लड़ने चल पड़ा । गरुड़व्यूह की और द्विमुख ने इस प्रकार दोनों दलों में भयंकर युद्ध प्रारम्भ हुआ । द्विमुख की सेना ने प्रद्योत की सेना को भगा दिया । सेना भगती देखकर प्रद्योत भी भागा। पर, द्विमुख ने उसे पकड़ लिया और उसके पैर में बेड़ी डाल दी । कुछ समय तक बंदीगृह में रखने के पश्चात् द्विमुख ने चंडप्रद्योत को मुक्त कर दिया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy