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तीर्थंकर महावीर उद्रायण चंडप्रद्योत को बंदी बनाकर वीतभय की ओर चला । पर, रास्ते में वर्षा आ गयी। राजा एक जगह ठहर गया । वहाँ किलाबंदी करायी और दसो राजा उसकी रक्षा करने लगे । अतः वह विश्रामस्थल दशपुर' कहाँ जाने लगा।
उद्रायण राजा सदा प्रद्योत को अपने साथ भोजन कराता । इसी बीच पयूषणा-पर्व आया। वह दिन उद्रायण के उपवास का था । अतः रसोइया चंडप्रद्योत के पास आकर पूछने लगा-"क्या भोजन कीजियेगा ?"
किसी दिन तो प्रद्योत से भोजन की बात नहीं पूछी जाती थी । उस दिन भोजन पूछे जाने पर उसे आश्चर्य हुआ और उसने रसोइए से उसका कारण पूछा तो रसोइए ने पर्दूषणा-पर्व की बात कह दी और कहा कि श्रावक होने से महाराज उद्रायण आज उपवास करेंगे ।
इस पर चंडप्रद्योत ने रसोइए से कहा-"तन्ममाप्युपवासोऽद्य, पितरौ श्रावको हि मे"-' ____ इस पर्दूषणा-पर्व के अवसर पर उद्रायण ने चंडप्रद्योत को कारागार से मुक्त कर दिया । मुक्त करने के बाद चंडप्रद्योत
ततः प्रद्योत नो राजा जैन धर्म शुद्धमारराध
१–त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक ५८९ पत्र १५६-२ ।
२–उत्तराध्ययन, भावविजय की टीका, उत्तरार्द्ध, श्लोक १८२, पत्र ३८६-२।
ऐसा ही वर्णन त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ११, दलोक ५९७ पत्र १५६.२ में भी आता है। वहाँ भी प्रद्योत से कहलाया गया है--
"..."श्रावको पितरौ मम"
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