________________
भक्त राजे
५६६ इसकी सूचना दी तो उसने तत्काल अनुमान लगा लिया कि, प्रद्योत वीतभय आया था। ___ तब तक दासियों ने सूचित किया कि स्वर्णगुलिका दासी नहीं है । यह सुनकर राजा ने यह जाँच करायी कि, प्रभु की प्रतिमा है या नहीं । प्रतिमा भी बदली होने का समाचार सुनकर उद्रायण ने प्रद्योत के पास दूत भेजा ।
उस दूत ने प्रद्योत से जाकर कहा-"मेरे राजा ने आप से कहलाया है कि चोर के समान दासी और प्रतिमा ले जाने में क्या आपको लजा नहीं लगी ? यदि दासी पर आप आसक्त हो तो उसकी आवश्यकता नहीं है, पर आप प्रतिमा वापस कर दें।"
चंडप्रद्योत इस संदेश को सुनकर दूत पर ही बिगड़ गया।
चंडप्रद्योत का उत्तर सुनकर उद्रायण दस मुकुटधारी राजाओं को लेकर अवन्ती की ओर चला । उस समय जेष्ठ का महीना था।
अवन्ती आकर उद्रायण ने चंडप्रद्योत से कहला भेजा-"अधिक आदमियों का नाश करने से क्या फल ? हम तुम में परस्पर युद्ध हो जाये।' चंडप्रद्योत ने रथ में बैठकर अकेले युद्ध करने की बात स्वीकार की।
पर, बाद में उसे भास हुआ कि रथ पर बैठकर तो मैं उद्रायण से जीत नहीं सकूँगा । अतः अनलगिरि हाथी पर बैठकर रणस्थल में गया । उसे देखकर उद्रायण ने कहा-"प्रतिज्ञा भूलकर हाथी पर बैठकर आये ?"
उद्रायण ने वाणों से हाथी के चरण बींध दिये। घायल होकर हाथी गिर पड़ा और उतरते ही प्रद्योत भी पकड़ लिया गया। राजा ने प्रद्योत के सिर पर लिखकर लगवा दिया
"यह हमारी दासी का पति है।"
लड़ाई में विजय पाने पर उद्रायण को अपनी प्रतिमा वापस मिल गयी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org