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________________ भक्त राजे हुआ पर बाद में मंत्रियों ने समझाया कि, उदयन-सरीखा योग्य वर आपको कन्या के लिए कहाँ मिलेगा।' चंड प्रद्योत और वीतमय चंडप्रद्योत के समय में सिंधु-सौवीर की राजधानी वीतभय में उद्रायण नामक राजा था । उस उद्रायण के पास चंदन के काष्ठ की महावीर स्वामी की एक प्रतिमा थी । उस प्रतिमा की सेवा-पूजा चंडप्रद्योत की देवदत्तानामक दासी किया करती थी। एक बार गांधार-नामक कोई श्रावक चरित्र-ग्रहण करने की इच्छा से जिनेश्वरों के सभी कल्याणक स्थानों की वंदना करने की इच्छा से निकला। अनुक्रम से वैताढ्य पर्वत पर स्थित शाश्वत प्रतिमाओं की वंदना करने की इच्छा से उसने उस पर्वत के मूल में बैठकर उपवास किये और शासन देवी की आराधना की। उससे तुष्ट होकर देवी ने उसे उन प्रतिमाओं का दर्शन करा दिया। शासन देवी ने सभी इच्छाओं की पूर्ति कराने वाली सौ गुटिकाएँ उस भक्त को दीं। ' वहाँ से लौटते हुए चंदन की प्रतिमा का दर्शन करने वह वीतभय आया । दैव संयोग से वह वहाँ बीमार पड़ गया। उस समय देवदत्तानामक कुब्जा दासी ने पिता-सदृश उसकी सेवा की। कुछ दिनों के बाद १-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक १८४२६५ । पत्र १४२-२-१४५-२ । २-उत्तराध्ययन नेमिचंद्र की टीका अ० १८ पत्र २५२-१ से ___ ३–त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक ४४५, पत्र १५१।२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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