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तीर्थंकर महावीर
अतिगुण वाला है । वह संगीत से मोहित करके बड़े-बड़े गजेन्द्रों को भी बाँध लेता है ।"
फिर उदयन को पकड़ कर उज्जयिनी लाने की यह विधि निश्चित की गयी कि, एक काष्ठ का हाथी बनाया जाये जो सजीव हाथी की तरह व्यवहार करे । और, काष्ठ के हाथी के अंदर सशस्त्र हाथी के यंत्रों को चलाते रहें और अवसर मिलने पर उज्जयिनी ले आयें ।
पुरुष रहें । वे उस उदयन को पकड़कर
यह विधि कारगर रही । उदयन पकड़ लिया गया और उज्जयिनी
लाया गया ।
उज्जयिनी आ जाने पर प्रद्योत ने उदयन से कहा - " मेरे एक कानी कन्या है । उसे तुम गंधर्वविद्या सिखा दो और सुखपूर्वक मेरे घर में रहो । लेकिन, कन्या कानी है इसलिए उसे देखना नहीं । यदि तुम उसे देख लोगे तो वह लजित होगी। और, अपनी पुत्री से कहा -- “तुम्हें गंधर्वविद्या सिखाने के लिए गुरु तो आ गया है, पर वह कोढ़ी है । इसलिए तुम उसे प्रत्यक्ष मत देखना ।
कन्या ने बात स्वीकार कर ली । उदयन वासवदत्ता को संगीत सिखाने लगा ।
एक दिन वासवदत्ता को पाट स्मरण करने में कुछ अन्यमनस्क जानकर उदयन ने क्रोधपूर्वक कहा - "हे कानी सीखने में तुम ध्यान नहीं देती हो । तुम दुःशिक्षिता हो ।” ऐसा सुनकर वासवदत्ता को आया । और, बोली - "तुम स्वयं कोढ़ी हो, यह तो देखते मुझे झूठे ही कानी करते हो ।"
इस प्रकार जब दोनों को अपने भ्रम का पता चल गया तो दोनों ने एक दूसरे को देखा ।
भी क्रोध नहीं और
और, बाद में यह वासवदत्ता उदयन के साथ कौशाम्बी चली गयी और वहाँ की महारानी हुई । वासवदत्ता के जाने पर पहले तो प्रद्योत क्रुद्ध
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