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भक्त राजे
५६५ मृगावती के इस संदेश से प्रद्योत बड़ा प्रसन्न हुआ और कहला भेजा कि, जब तक मैं रक्षक हूँ तब तक मृगावती के पुत्र को क्षति पहुँचाने की कौन चेष्टा कर सकता है ?"
प्रद्योत ने फिर उजयिनी से परम्परा से, ईटें मँगवायीं और कौशाम्बी की किलेबन्दी करायी।
इन घटनाओं के कुछ ही समय बाद महावीर स्वामी कौशाम्बी आये । और, मृगावती चंडप्रद्योत की ८ रानियों के साथ साध्वी हो गयीं। इसका वर्णन हम शतानीक के प्रसंग में दे आये हैं। भगवान् के उस समवसरण मैं जिसमें मृगावती गयी थी, प्रद्योत भी गया था। इसी प्रसंग में प्रद्योत के सम्बंध में भरतेश्वर-बाहुबलि वृत्ति में आता है :
ततश्चण्डप्रद्योतो धर्ममङ्गोकृत्य स्वपुरम् ययौ।।
शतनीक के पश्चात् उदयन के साथ भी एक बार इस चण्डप्रद्योत ने बड़े छल से व्यवहार किया।
कथा आती है कि, उसकी पुत्री वासुदत्ता ने गुरु के पास समस्त विद्याएँ सीख ली । केवल गंधर्वविद्या सिखाने के लिए उसे कोई उचित गुरु नहीं मिला। एक बार राजा ने बहुदृष्ट और बहुश्रुत मंत्रियों से घूछा-'इस कन्या को गंधर्वविद्या सिखाने के योग्य कौन गुरु है ?"
राजा का प्रश्न सुनकर मंत्री ने कहा-"महाराज! उदायन तुम्बरु ३.गंधर्व की दूसरी मूर्ति के समान है। गंधर्वकला में वह
१-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ८, श्लोक १७६, पत्र १०५-२ ।
२-भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति, द्वितीय विभाग, पत्र ३२३-२ । ३-शक्रस्य देवेन्द्रस्य गन्धर्वानीकाधीपतौ।
-स्थानांग सूत्र ठाणा ७,
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