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________________ ५६२ तोर्थंकर महावीर देखा । दूसरे दिन प्रद्योत ने उनके पास एक दूती भेजा। दूती ने आकर बड़ी विनती की पर उन लड़कियों ने रोष पूर्वक उमें तिरस्कृत कर दिया। इस प्रकार दो दिनों तक वे लड़कियाँ दूती को तिरस्कृत करती रहीं। तीसरे दिन उन लड़कियों ने कहा-"यह हमारा सदाचारी भ्राता हमारी रक्षा करता है । पर, आज से सातवें दिन वह बाहर जाने वाला है । अतः उस दिन राजा गुप्त रूप से आ सकता है ।” इधर अभयकुमार ने एक आदमी को ठीक करके उसका नाम प्रद्योत विख्यात कर दिया । और, लोगों से बताया कि यह हमारा भाई पागल हो गया है। उसे बाँधकर अभयकुमार नित्य वैद्य के पास ले जाता। वह रास्ते भर चिल्लाता जाता--"मैं प्रद्योत हूँ। यह हमें बाँध कर लिये जा रहा है।" इस प्रकार करते-करते सातवाँ दिन आया। प्रद्योत उस दिन गणिकाकन्याओं के पास आया । अभयकुमार के चरों ने उसे बाँध लिया। और शहर के बीच से उसे उसी प्रकार ले आये, जैसे रोज नकली प्रद्योत को ले जाते थे । नगर से एक कोस बाहर निकलकर अभयकुमार ने प्रद्योत को रथ में डाल दिया. राजगृह ले आया और उसे श्रेणिक राजा के पास ले गया । श्रेणिक उसे देखते ही खङ्ग खींच कर मारने दौड़ा। पर अभयकुमार ने श्रेणिक को मना किया और वस्त्राभूषण से साम्मानित करके प्रद्योत को वहाँ से विदा कर दिया।' चंड प्रद्योत और वत्स चंडप्रद्योत के समय में वत्स की राजधानी कोशाम्बी में शतानीक राजा राज्य करता था। लक्ष्मी-गर्वित होकर एक दिन राज-सभा में बैठा १-आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १६३ । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक, २९३ त्रत्र १४६-१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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