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________________ भक्त राजे ५६१ इसी प्रकार उज्जयिनी-नगरी में एक बार बड़ी आग लगी । प्रद्योत ने उसकी शांति का उपाय अभयकुमार से पूछा । अभय को बतायी विधि से अग्नि शान्त हो गयी । इससे भी प्रद्योत बड़ा प्रसन्न हुआ।' एक समय उजयिनी में महामारी फैली । राजा ने उसके लिए भी अभयकुमार से उपाय पूछा। अभयकुमार ने कहा--"आपकी सभी रानियों में जो रानी आपको दृष्टि से जीत ले मुझे उसका नाम बताइए।" राजा ने शिवादेवी का नाम बताया तो अभयकुमार ने सलाह दी कि शिवादेवी चावल का बलिदान देकर भूत की पूजा करें। शिवादेवी ने तद्रूप भूतों की पूजा की। इससे महामारी शान्त हो गयी। अभयकुमार के बुद्धि-कौशल से प्रसन्न होकर प्रद्योत ने अभयकुमार को मुक्त कर के राजगृह के लिए विदा कर दिया । चलते समय अभयकुमार ने प्रतिज्ञा की कि राजा प्रद्योत ने मुझे छल से पकड़वाया था; पर मैं उसको दिन दहाड़े नगर में "मैं राजा हूँ" यह चिल्लाता हुआ हर ले जाऊँगा।" कुछ समय के बाद अभयकुमार एक गणिका की दो पुत्रियों के साथ बणिक का रूप धारण करके उज्जयिनी आया और राजमार्ग पर उसने एक मकान भाड़े पर ले लिया। उधर से जाते हुए एक बार राजा ने उन कन्याओं को देखा और लड़कियों ने भी विलास-पूर्वक प्रद्योत राजा को १-आवश्यकचूर्णि उत्तरार्द्ध, पत्र १६२। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक २६६ पत्र १४.२। २-आवश्यकचूर्ण, उत्तरार्द्ध, पत्र १६२। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक २६९ . पत्र १४५.२ । ३-आवश्यकचूर्णि उत्तरार्द्ध पत्र १६३ ।। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक २७७ पत्र १४५.२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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