________________
तीर्थंकर महावीर
उज्जयिनी में प्रद्योत ने अभयकुमार को राजहंस के समान काष्ठ के पिंजरे में रखा |
५६०
प्रद्योत के यहाँ रहकर भी अभयकुमार ने अपनी कुशाग्रबुद्धि और दूरदर्शिता प्रदर्शित की। प्रद्योत प्रायः अपने लोहजंघ- नामक दूत को भृगुकच्छ भेजा करता था । उज्जयिनी से भृगुकच्छ २५ योजन दूर था । लोहजंत्र इस दूरी को एक दिन में तय कर लेता था । 2 उसके बार-बार आने-जाने से वहाँ के लोगों को कष्ट होता । अतः वहाँ के लोगों ने विचार किया कि उसे मार ही डालना चाहिए । इस विचार से उन लोगों ने उसे पाथेय में विष मिश्रित लड्डू दे दिये । उन्हें लेकर वह लोहजंघ उज्जयिनी की ओर चला । काफी रास्ता पार करने के बाद वह एक नदी किनारे भोजन करने बैठा । उस समय अपशकुन हुआ । उसने खाना नहीं खाया और कुछ दूर चलकर फिर खाने बैठा तो फिर अपशकुन हुआ । इस प्रकार बिला खाये ही लोहजंघ अवन्ति आ गया । अवन्ति आकर उसने चंडप्रद्योत से सारी बात कही । चंडप्रद्योत ने अभयकुमार को बुलाकर पूछा । अभयकुमार ने राजा को बताया कि इसमें द्रव्यसंयोग से दृष्टिविष सर्व उत्पन्न हो गया है । यदि लोहजंघ इसे खोलता तो वह भस्म हो जाता। पाटेली जंगल में रखवाकर खोलवायी गयी । उसके प्रभाव से एक वृक्ष ही भस्म हो गया ।
१ – त्रिपष्ठिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक १७२
पत्र १४२-१
यह पूरी कथा आवश्यकचूर्णि उत्तरार्द्ध, पत्र १५९-१६० पर भी आती है ।
२. – आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १६०
३ – त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक १७३१८३, पत्र १७२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org