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________________ भक्त राजे ५८६ अतः एक दिन राजसभा में उसने घोषित किया कि जो कोई अभयकुमार को बाँध कर मेरे समक्ष उपस्थित करेगा, उसे मैं प्रसन्न कर दूँगा | यह घोषणा सुनकर सभा में उपस्थित एक गणिका ने हाथ ऊँचा किया और बोली -- " इस काम को कहा - " इस काम होगी मैं दूँगा । " उस गणिका ने पकड़ा नहीं जा सकता; सकता है । यह विचार की माँग की । ये तीनों स्त्रियाँ राजगृह गर्यो और नगर से बाहर एक उद्यान में ठहरीं | नगर के अन्दर के चैत्यों का दर्शन करने के लिए वे नगर में गय और बड़ी भक्ति से चैत्यों में पूजा करके मालकोश आदि राग से प्रभु की स्तुति करने लगीं । उस समय अभयकुमार भी वहाँ दर्शन करने आया था । उन कपट-श्राविकाओं की पूजा समाप्त होने के बाद अभयकुमार ने उनसे उनके बारे में पूछताछ की। एक औरत ने अभयकुमार से कहा"उज्जयिनी नगरी की एक धनाढ्य व्यापारी की मैं विधवा हूँ । ये दोनों साथ की औरतें मेरी पुत्रवधु हैं ।" अभयकुमार ने उन्हें राजमहल में भोजन के लिए आमंत्रित किया । इस पर उन कपट-श्राविकाओं ने कहा"आज हम लोगों का तीर्थोपवास है । अतः हम लोग आपके अतिथि किस प्रकार हो सकते हैं ।" इस पर अभय ने दूसरे दिन प्रातःकाल उन्हें बुलाया उसके बाद अभयकुमार जब एक बार उन कपट-: -श्राविकाओं के घर गया तो उन कपटश्राविकाओं ने चन्द्रहास- सुरा मिश्रित जल पिला कर अभवकुमार को बेहोश कर दिया और मूर्छावस्था में बाँध कर उसे लेकर उज्जयिनी चली आयीं । Jain Education International करने में मैं समर्थ हूँ ।" इसे सुनकर प्रद्योत ने को तुम करो । तुम्हें जिस प्रकार धन की आवश्यकता विचार किया कि अभयकुमार किसी अर्थ - रूप से तो केवल धर्म का छल करने से मेरा काम सध करके उस गणिका ने राजा से दो युवती नारियों For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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