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तीर्थकर महावीर
चंड प्रद्योत और राजगृह एक बार इसने अपने आधीन १४ राजाओं के साथ राजगृह पर आक्रमण कर दिया। उस समय राजगृह में श्रेणिक-नामका राजा राज्य करता था और श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार श्रेणिक का प्रधानमंत्री था । अभयकुमार ने बड़ी बुद्धि से उस युद्ध को टाल दिया और बिला लड़े ही प्रद्योत अपनी राजधानी उज्जैन भाग गया । ___ कथा है कि, अभयकुमार ने शत्रु के वास करने योग्य भूमि में स्वर्ण के सिक्के गड़वा दिये और जब प्रद्योत ने राजगृह-नगर घेर लिया तो अभयकुमार ने प्रद्योत को एक पत्र भेजा
"शिवादेवी और चिल्लणा के बीच मैं किंचित् मात्र भेद नहीं रखता हूँ। इसलिए शिवादेवी के सम्बन्ध के कारण आप भी मेरे पूज्य हैं। इसी दृष्टि से, हे उज्जयिनी नरेश, आपके एकान्त हित की दृष्टि से आपको सूचित करना चाहता हूँ कि आपकी सेना के समस्त राजाओं को श्रेणिक ने फोड़ लिया है । और, आपको अपने आधीन करने के लिए श्रेणिक ने उनके पास स्वर्ण मुद्राएँ भेजी हैं। अतः वे राजा आपको बाँध करके मेरे पिता के अधीन कर देने वाले हैं । बात पर विश्वास करने के लिए आप लोगों के वासगृह के नीचे सोने की मुद्राएँ गड़ी हैं, उसे खुदवाकर देख लीजिये ।"
इस पत्र को पढ़कर प्रद्योत ने वहाँ खुदाया और उसे स्वर्णमुद्राएँ सचमुच गड़ी मिली । बात सच देख कर प्रद्योत राजा ने वहाँ से पड़ाव उठा कर एकदम उज्जैन की ओर कूच कर दिया ।'
उज्जयिनी लौट आने के बाद प्रद्योत को इस बात का भास हुआ कि अभयकुमार ने छल से उसे भगा दिया ।
१-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक १२४१३० पत्र १४०-२
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