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तीर्थंकर महावीर
चंद्रप्रद्योत के सम्बन्ध में जैन ग्रंथों में आता है कि उसके पास चार रत्न थे - १ लोहजंघ- नामक लेखवाहक, २ अग्निभीरु नामक रथ, ३ अनलगिरि नामक हस्ति और ४ शिवा नामक देवी । "
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पाली- ग्रंथ 'उदेनवत्थु ' में प्रद्योत के एक द्रुतगामी रथ का वर्णन मिलता है । भद्रावति ( भदवतिका ) नामक हथिनी, कक्का ( पाली 'काका' ) नामक दास, दो घोड़ियाँ चेलकंठी तथा मंजुकेशी एवं नालागिरी नामक हाथी ये पाँचों उस रथ को खींचते थे । *
यह शिवा देवी वैशाली के राजा चेटक की पुत्री थी । आवश्यकचूर्णी में जहाँ चेटक की सात पुत्रियों का उल्लेख आता है, उसी स्थल पर शिवा देवी का भी उल्लेख है ।
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चंडप्रद्योत की ८ अन्य रानियों के उल्लेख जैन ग्रंथों में मिलते हैं । वे सभी कौशाम्बी की रानी मृगावती के साथ साध्वी हो गयी थी । उनमें एक का नाम अंगारवती था। यह अंगारवती सुंसुमारपुर के राजा धुंधुमार की पुत्री थी । इस अंगारवती को प्राप्त करने के लिए प्रद्योत ने मुंसुमारपुर पर घेरा डाला था। इस अंगारवती के सम्बंध में यह भी
१ -- आवश्यकचूर्णि, भाग २, पत्र १६० पत्र ६७३-१; त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्रपर्व १०,
आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति सर्ग ११, श्लोक १७३
पत्र १४२-२
२ - धम्मपद टीका; उज्जयिनी - दर्शन, पृष्ठ १२; उज्जयिनी इन ऐंसेंट इण्डिया, पृष्ठ १५
३ - आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १६४
४ – देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ६७
५ - वर्तमान चुनार, जिला मिरजापुर
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