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भक्त राजे
५८५ पड़ने का कारण यह था कि, उसके जन्म लेते ही संसार में दीपक के समान प्रकाश हो गया था।' इस अनुश्रुति का यह मत है कि प्रद्योत उसी समय राज सिंहासन पर बैठा जब गौतम ने बुद्धत्व प्राप्त किया था ।
कथा-सरित्सागर में उसका नाम 'चंड' पड़ने का यह कारण दिया है कि महासेन ने चंडी की आराधना करके अजेय खड्ग और 'चंड' नाम प्रात किया था। इस कारण वह महाचंड कहलाने लगा।
बुद्धघोष ने प्रद्योत के जन्म के विषय में लिखा है कि वह एक ऋषि के नियोग से पैदा हुआ था।
पुराणों में प्रद्योत के लिए, 'नयवर्जित' शब्द का भी उल्लेख मिलता है और धम्मपद की टीका में लिखा है कि वह किसी भी सिद्धान्त का पालन करने वाला नहीं था। तथा कर्मफल पर विश्वास नहीं करता था। त्रिपष्टिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग ८ श्लोक १५० तथा १६८ में उसके लिए स्त्रीलोलुप, प्रचंड और स्त्री-लम्पट शब्द का प्रयोग किया जाता है।
उदेनवत्थु में चंडप्रद्योत की चर्चा करते हुए आता है कि, वह सूर्य की किरणों के समान शक्तिशाली था।
१-राकहिल लिखित लाइफ आव बुद्ध, पेज १७ ।। २-राक हल-लिखित लाइफ व बुद्ध पेज ३२ को पादटिप्पणि १ । ३-वही। तथा उज्जयिनी इन ऐं शेंट इं डया-विमल चरण-लिखित, पेज १३ । ४-समन्त पासादिका, भाग १, पेज २१४ । उज्जयिनी इन ऐंशेंट इण्डिया, पेज १४ । डिक्शनरी प्राव पाली प्रापर नेम्स, भाग १, पेज ८३६ ।
५-उज्जैनी इन ऐंशेंट इंडिया ला-लिखित पेज १३, मध्यभारत का इतिहास, प्रथम भाग, पेज १७५-२७६ ।
६-उज्जयिनी इन ऐंशेंट इंडिया, पेज १३ ।
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