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________________ ५८३ भक्त राजे श्रमण', ब्राह्मण भिक्षु प्रवासी आदि को भोजन दिया जाता। और, स्वयं शीलव्रत, गुणवत, विरमण, प्रत्याख्यान, पोषध, उपवास द्वारा जीवन व्यतीत करने लगा। उसके बाद प्रदेशी का ध्यान राज्य कार्य और अंतःपुर की ओर कम रहने लगा। उसे अन्यमनस्क देखकर उसकी रानी ने उसे विष देकर अपने पुत्र सूर्यकांत को गद्दी पर बैठाने का पडयंत्र किया । और, एक दिन रानी सूर्यकान्त ने उसे विष दे ही दिया । राजा को यह ज्ञान हो गया कि रानी ने विष दिया । पर, असह्य वेदना सहन करने के बावजूद राजा ने रानी पर किंचित् मात्र रोष नहीं किया । इस प्रकार अत्यंत शांत रूप में मृत्यु प्राप्त कर वह सौधर्मदेव लोक में सूर्याभदेव के रूप में उत्पन्न हुआ। चण्डप्रद्योत भगवान महावीर के समय में उज्जैनी में चंडप्रद्योत नाम का राजा राज करता था। उसका मूल नाम प्रद्योत था, अत्यन्त क्रोधी स्वभाववाला होने से उसके नाम के पूर्व 'चंड' जोड़ कर उसका नाम लिया जाता था १-श्रमण से यहाँ तात्पर्य जैन-साधु से नहीं है; क्योंकि जैन-साधु दानशाला में भिक्षा लेने ही नहीं जाते थे। २-रायपसेगी सटीक, सूत्र २००, पत्र ३३२ । ३-रायपसेणी सटीक सूत्र २०४, पत्र ३३५ । प्रदेशी राजा और केशी मुनि का वृतांत उपदेशमाला सटीक पत्र २८४-२८४ तथा भरतेश्वर बाहुबलि वृति पूर्वाद्ध पत्र ६४-२-६७.१ में भी आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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