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तीर्थङ्कर महावीर सकता हूँ। नहीं तो मैं तो यह समझता हूँ कि शरीर के साथ जीव भी नष्ट हो गया ।"
इसे सुनकर केशी मुनि ने कहा-"यदि कोई कामी आपकी रानी के. साथ काम भोगता पकड़ा जाये तो क्या दंड दोगे ?
प्रदेशी ने उत्तर दिया-"हाथ-पाँव कटवा कर उसे प्राण दंड दूंगा।"
तो फिर केशी मुनि ने कहा-“यदि वह कहे कि 'दंड देने से पूर्व : जरा ठहर जाइए। मैं अपने सम्बन्धियों को जरा बताता आऊँ कि व्यभिचार का फल प्राणदंड है।' तो तुम क्या करोगे?''
"पर, वह तो मेरा अपराधी है, क्षणमात्र ढील दिये बिना, मैं उसे दंडित करूँगा।"-प्रदेशी ने कहा ।। ___ "ठीक इसी प्रकार तुम्हारा दादा नरक भोगने में परतंत्र हैं, स्वतंत्र नहीं है। इसीलिए वह तुमसे कुछ कहने नहीं आ सकता।"--केशीमुनि ने उत्तर दिया ।
इस प्रकार प्रदेशी के हर तर्क का उत्तर देकर केशीकुमार ने राजा को निरुत्तर कर दिया।
समस्त शंकाएं मिट जाने पर प्रदेशी राजा श्रमणोपासक हो गया ।'
श्रावक होने के बाद प्रदेशी ने अपने राज्य के सात हजार गाँवों को चार भागों में विभक्त कर दिया। एक भाग राज्य की व्यवस्था के लिए बलवाहन ( सेना के हाथी, घोड़ा रथ आदि ) को दे दिया, एक भाग कोष्ठागार के लिए रखा, एक भाग अंतःपुर की रक्षा और निर्वाह के लिए. रखा और चौथे भाग की आय से एक कूटागारशाला' बनवायी जहाँ १-तए णं पएसी राया समणोवासए अभिगए'...
-रायपरवेणी सटीक, सूत्र २०२, पत्र ३३२ २-कूटानि शिखराणि स्तू पिकास्तद्वन्त्य गाराणि-गेहानि-अथवा कूट-सत्त्वबन्धन स्थानं तद्वदगाराणि कूटागराणि
-~-ठाणांगसूत्र सटीक, पूर्वार्द्ध, पत्र २०५-१
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