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________________ तीर्थङ्कर महावीर उसी समय पार्श्वनाथ की परम्परा के केशीकुमार ' अपने ५०० शिष्यों के साथ विहार करते श्रावस्ती नगरी में आये थे और श्रावस्ती के ईशान कोण में स्थित कोट्ठय ( कोष्ठक ) चैत्य में ठहरे थे । अपार जनसमूह उनके दर्शन को जा रहा था । उस समूह को देखकर चित्त को शंका हुई कि आज इस नगरी में इंद्रमह, स्कंदमह, मुकुंदमह, नागमह, भूतमह, यक्षमह, स्तूपमह, चैत्यमह, वृक्षमह, गिरिमह, गुफामह, कूपमह, नदीमह, सरोवर मह अथवा समुद्रमह' में कौनसा उत्सव है, जो इतना बड़ा जनसमूह एक ओर चला जा रहा है। ५८० चित्र - सारथी भी वहाँ गया । उसने केशी मुनि की प्रदक्षिणा करके उनकी वंदना की । केशी मुनि का उपदेश सुनकर चित्त ने पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत ( गृहिधर्मं ) स्वीकार किये और वह भ्रमणोपासक हो गया । कुछ दिन बाद जितशत्रु ने भी एक भेंट तैयार की और चित्त के ही हाथ वह भेंट प्रदेशी के पास भेजी । चित्त जत्र चलने लगा, वह पुनः केशी मुनि के पास गया और चित्त ने केशी मुनि को सेतव्या आने के लिए आमंत्रित किया । केशी मुनि ने अधार्मिक राजा के कारण पहले तो आने से इनकार किया; पर चित्त के अनुनय-विनय पर और समझाने पर वह सेतव्या 'आने को तैयार हो गये । सेतव्या आने के बाद चित्त ने मृगवन के रखवालों को भी केशी मुनि के आने की सूचना दे दी और आते ही स्वागत-सत्कार में किसी प्रकार की कमी न आने देने के लिए सचेत कर दिया । १ - यह केशीकुमार वही थे, जिनसे श्रावस्ती में गौतमस्वामी से वार्तालाप हुई थी । और बाद में वे भगवान् के तीर्थ में सम्मिलित हो गये [उत्तराध्ययन, अध्ययन २३, नेमिचंद्र का टीका सहित पत्र २८६-२-३०२-१ । २-- रायपतेणी सटीक, सूत्र १४५, पत्र २७७-१ । ३ - रायपसेणी सटीक, सूत्र १५०, पत्र २६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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