________________
भक्त राजे
५७६
होना लिखा है | अतः लगता है कि जितशत्रु और चेटक एक ही व्यक्ति थे ।"
वनियागाम और वैशाली को एक मान लेना हार्नेल की एक मूलभूत भूल है, जिसके कारण उन्हें कितनी ही जगहों पर भ्रम रहा । मैंने अपनी पुस्तक वैशाली (हिन्दी, द्वितीयावृत्ति, पृष्ठ ५२ ) और तीर्थङ्कर महावीर ( भाग १, पृष्ठ ९२ ) मैं इस प्रश्न पर विस्तृत विचार किया है । अतः यहाँ उनकी आवृत्ति नहीं करना चाहता !
बौद्ध-ग्रन्थों का यह उल्लेख कि, पायासी कोसल के राजा प्रसेनजित का आधीन राजा था, जैन - प्रमाणों से पूर्णतः खंडित हो जाता है ।
इस प्रदेशी राजा के पास चित्त-नामक एक सारथी था । वह चित्त प्रदेशी से ज्येष्ठ था और भाई के समान था । वह चित्त अर्थशास्त्र में, साम-दाम-दंड-भेद में कुशल और अनुभवी व्यक्ति था । उसमें औत्पात्तिकी, वैनयिकी, कर्मज और पारिणामिक' चारों प्रकार की बुद्धियाँ थीं । राजा प्रदेशी विभिन्न बातों में चित्त से परामर्श लिया करता था ।
एक बार प्रदेशी ने राजा को देने योग्य एक भेंट तैयार करायी और चित्त सारथी को बुला कर कहा - " कुणाल- देश के श्रावस्ती नगरी के जितशत्रु राजा को दे आओ ।"
चित्रा उस उपहार को लेकर श्रावस्ती गया । जितशत्रु ने उसका स्वागत किया और चित्त ने प्रदेशी का भेजा उपहार उसे दे दिया |
?
- इन बुद्धियों की परिभाषा टीकाकार ने इस रूप में दी हैश्रौत्पाशिक्या अदृष्टाश्रु ताननुभूतविषयाकस्माद् भवन शीलवा वैनयिक्या -- विनयलभ्यशास्त्रार्थ संस्कारजन्यया कर्मजया - कृषि वाणिज्यादिकर्मभ्यः सप्रभावया पारिणमिक्या - प्रायोवयोविपाकजन्यया
-रायपसेणीयमुत्त सटीक, सूत्र १४५ पत्र २७७-१ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org