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तीर्थंकर महावीर
सहायता लेने राजगृह गया। पर, जब वह पहुँचा तो नगर का फाटक बंद था । वह बाहर एक शाला में पड़ा रहा और वहीं मर गया । ' प्रसेनजित के जीवन की इतनी महत्वपूर्ण घटना का कोई उल्लेख जितशत्रु के सम्बन्ध में नहीं मिलता । यदि दोनों एक होते तो इसका उल्लेख किसीन किसी रूप में अवश्य मिलता ।
एक अन्य स्थल पर ला महोदय ने वाराणसी, काम्पिल्य, पलासपुर, और आलभिया के जितशत्रु राजाओं को एक ही व्यक्ति मान लिया है और कहा है कि यह सब प्रसेनजित के आधीन राजे थे ।
ला ने यहाँ उवासगदसाओ का प्रमाण दिया है । पर, ला महोदय ने वह वर्णन ठीक से पढ़ा नहीं । उवासगदसाओ में उल्लेख ऐसा है कि उन नगरों में जब महावीर स्वामी गये तो वहाँ के राजे उनकी वंदना करने आये | यह सब एक ही व्यक्ति नहीं थे; बल्कि भिन्न-भिन्न थे । प्रसेनजित राजा था, वह अपना राज्य कार्य छोड़कर महावीर स्वामी के विहार में स्थल-स्थल पर क्यों घूमा करता । जैन ग्रन्थों में २५ || आर्य-देशों के उल्लेख आये हैं । उसमें वाराणसी, काम्पिल्य आदि स्वतंत्र राष्ट्र की राजधानियाँ बतायी गयी हैं । अतः सबको एक में मिलाना किसी प्रकार उचित नहीं है ।
उवासगदाओ के अनुवाद में हार्नेल ने जितशत्रु को विदेह की राजधानी मिथिला का उवासगदसाओ में उसे वनियागाम या वैशाली का दूसरी ओर महावीर के मामा चेटक को वैशाली
लिखा है " सूर्यप्रज्ञप्ति में राजा बताया गया है । यहाँ राजा बताया गया है । अथवा विदेह का राजा
१- त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक ५०१ पत्र १५३-२ २ - श्रावस्ती इन इण्डियन लिटरेचर ( मेमायर्स आव द' आक्यलाजिकल सर्वे श्राव इण्डिया, संख्या ५० ) पेज 8 1
३ - उवासगदसाओ अंग्रेजी अनुवाद पेज ६ ।
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