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भक्त राजे 'राजन्य' शब्द का व्यवहार करते हैं। फिर अब हमें 'राजन्य' का अर्थ समझ लेना चाहिए :१-क्षत्रं तु क्षत्रियो राजा राजन्यो बहुसंभवः।
-अभिधानचिंतामणि सटीक, पृष्ठ ३४४ । २--मूर्धाभिषिक्तो राजन्यो बाहुजः क्षत्रियो विराट् । राशि राट्पार्थिवक्ष्माभन्नृपभूप मही क्षितः॥
-अमरकोष (खेमराज श्रीकृष्णदास ) पृष्ठ १४४ ।
जब राजन्य का अर्थ राजा हुआ तो फिर पायासी को 'चीफटेन' कहना पूर्णतः भूल है । 'राज होना' और 'आधीन होना' दोनों परस्पर विरोधी बातें हैं।
दूसरी बात यह कि वह पायासी क्षत्रिय था। फिर, वह ब्रह्मदेय क्यों · लेने लगा ?
बौद्ध-ग्रन्थों में श्रावस्ती के राजा का नाम प्रसेनजित आने से विमल चरण ला ने जैन-ग्रंथों में आये जितशशु और प्रसेनजित को एक मान लिया है।' पर, यह उनकी भूल है । जैन-ग्रन्थों में प्रसेनजित नाम भी आता है। ( उत्तराध्ययन, नेमिचंद्र की टीका, अष्टम अध्ययन, पत्र १२४-१।२ )। यदि प्रसेनजित और जितशजु एक ही व्यक्ति का नाम होता तो वैसा स्पष्ट उल्लेख मिलता । जब जितशत्रु और प्रसेनजित दो भिन्न नाम मिलते हैं, तो दोनों का एक में मिलाना किसी भी प्रकार उचित नहीं है।
बौद्ध-ग्रन्थों में इस जितशत्रु के सम्बन्ध में आता है कि, इसका लड़का विडूडभ इसके जीते ही गद्दी पर बैठ गया और प्रसेनजित कूणिक की
१-श्रावतीइन इडियन लिटरेचर [मेय यर्स आवद, आर्यालाजिकल समें आव इडिया संख्या ५० ] पेज ११
२ भद्दसाल-जातक हिन्दी-अनुवाद, भाग ४, पेज ३५३ । मज्मिमनिकाय [ हिन्दीअनुवाद ] पेज ६६७ की पाद-टिप्पणि डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, भाग २ पेज १७२।
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