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तीर्थंकर महावीर
तत्थ णं सावत्थीए नयरीर पएसिस्स रनो अंतेवासी जियसत्त नामं राया होत्था ।
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रायपसेणी सटीक - - पत्र २७९-१ श्रावस्ती नगरी का राजा जितशत्रु प्रदेशी राजा का अंतेवासी राजा था । अंतेवासी' पर टीका करते हुए मलयगिरी ने लिखा है :समीपे वसतीत्येवंशीत्योऽन्तेवासी - शिष्यः । अन्तेवासी सम्यगाज्ञा विधायी इति भावः ॥
-राययसेणी सटीक, पत्र २७९-१ इस टीका से दो ध्वनियाँ निकलती हैं। एक की श्रावस्ती का राजा सेयविया का निकटवर्ती राजा था और दूसरा यह कि वह प्रदेशी का आज्ञा मानने वाला राजा था ।
पर, बौद्ध ग्रन्थों में इससे पूर्णतः विपरीत बात कही गयी है । दीर्घानि काय के पायासी राजञ्ञसुत्त ( दीघनिकाय मूल, भाग २, महावग्ग, पृष्ठ २३६ ) मैं आता है :
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तेन खो पन समयेन पायासी राजञ्ञ सेतव्यं प्रभावसति सतुस्सद् सतिणकट्ठोदकं सध राजभोग्गं रज्ञा पसेदिना कोसलेन दिनं राज दायं ब्रह्मदेय्यं ।
- उस समय पायासी राजन्य (राजञ्ञ, मांडलिक राजा) जनाकीर्ण तृणकाष्ठ उदक धान्य सम्पन्न राज-भोग्य कोसलराज प्रसेनजित द्वारा दत्त, राज दाय, ब्रह्मदेय सेतव्या का स्वामी होकर रहता था ।
- दीघनिकाय ( राहुल - जगदीश काश्यप का अनुवाद) पृष्ठ १९९ । इसी आधार पर डिक्शनरी आव पाली प्रपार नेम्स, भाग २, पृष्ठ १८७ में पायासी को सेतव्या का 'चीफटेन' लिखा है ।
पर,
यह बौद्ध मान्यता जैन- मान्यता से बिलकुल मेल नहीं खाती और स्वयं बौद्ध - उद्धरण में परस्पर विरोधी बातें हैं । पायासो के लिए बौद्ध
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