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________________ भक्त राजे प्रदेशी केकयार्द्ध - जनपद की सेतव्या नामक राजधानी' में प्रदेशी' नाम का राजा राज्य करता था । इस सेतव्या के ईशान कोण में नन्दनवन के समान मृगवन नामक उद्यान था । सेतव्या का राजा प्रदेशी अधार्मिक, धर्म के अनुसार आचरण न करने वाला, अधर्म - पालक, अधर्म का प्रसार करने वाला था । उसके शील तथा आचार में धर्म का किंचित् मात्र स्थान नहीं था । वह राजा अपनी आजीविका अधर्म से ही चलाता था । वह प्रचंड क्रोधी था उसके हाथ सदा लोही रहता था । उसी समय में श्रावस्ती - नगर में जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था। रायपसेणी में आता है : ५७५ १ - देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग १, पेज ४४९४५ । इस राज्य का नाम केकयार्द्ध पढ़ने का कारण यह था कि यह मूल केकय-राज्य या उपनिवेश था। इस सम्बंध में हमने तीर्थंकर महावीर, भाग १ पेज १८६ तथा वीर विहार-मीमांसा ( हिन्दी ) पेज २३ में विशेष रूप से विचार किया है । और राजा का नाम 'पयेसी' [ प्रदेशी ] होने से भी हमारी मान्यता की पुष्टि होती है । २ - एसिकहा, रायपसेणी सटीक, पत्र २७३ - १ । ३ - अधम्मिए अधम्मिट्टे श्रधम्मक्खाई धम्मा धम्मपलोई, अधम्मपजणणे, अधम्मसीलसमुयायारे, अधम्मेण चैव वित्ति कप्पेमाणे, 'हा' 'छिंद' 'भिंद' पवत्तए लोहियपाणी पावे चंडे रुद्दे खुद्द साहस्सीए उक्कंचण वंचण माया नियडि कूड कवड सायिसंपयोग बहुले निस्सीले निव्वए निग्गुणे निम्मेरे निप्पच्चक्खाणपोसहोव वासे बहूणं दुप्पयच उप्पयभिय पसुपक्खी सिरिसवाण घायाए वहाए उच्छायण्याए अधम्म केऊ समुट्ठिए, गुरुणं णो अब्भुट्ठेति णो विषयं पउ जइ, सयस्स विय णं जणवयस्सो सम्भं कर भरवित्तिपवतेइ | - रायपसेणीय सटीक सानुवाद, पत्र २७६-१-२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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