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तीर्थंकर महावीर इसे सुनकर करकंडु कुछ नहीं बोले । इतने में नमि राजर्षि ने द्विमुख ने कहा- "जब आपने राज्यादि सघ का त्याग कर दिया और निर्गन्थ बने तो आप दूसरे का दोष क्यों देखते हैं ?" ___अब नग्गति बोले- "हे मुनि सर्व त्याग करके अब केवल मोक्ष के लिए उद्यम करो । अन्य की निन्दा करने में क्यों प्रवृत्त हैं ?" ___अंत में करकंडु ने कहा-"मोक्ष की आकांक्षा वाला मुनि यदि दूसरे मुनि की आदत का निवारण करे तो इसमें निन्दा किस प्रकार हुई ? जो क्रोध से अथवा ईर्ष्या से दूसरे का दोष कहे उसे निन्दा कहते हैं । ऐसी निंदा किसी मोक्षाभिलाषी को नहीं करनी चाहिए।" .. करकंडु की इस प्रकार की शिक्षा को शेष तीनों मुनियों ने स्वीकार कर लिया।
फिर ये चारो मुनि स्वेच्छा से विचरने लगे और कालान्तर में मोक्ष गये।
इन चारों प्रत्येकबुद्धों के जीवों ने पुष्पोत्तर-नामक विमान से एक साथ च्यव किया था। चारों ने पृथक-पृथक स्थानों में अवश्य चरित्र ग्रहण किया; पर चारों की दीक्षा एक ही समय में हुई और एक ही साथ सब मोक्ष गये ।
डाक्टर रायचौधरी की एक भूल डाक्टर हेमचन्द्र रायचौधरी ने 'पोलिटिकल हिस्ट्री आव ऐंशेंट इंडिया' ( पाँचवाँ संस्करण, पृष्ठ १४७ ) में इन प्रत्येकबुद्धों को पार्श्वनाथ की परम्परा का साधु मानकर उनका काल-निर्णय करने का प्रयास किया है । पर, ये तो चंडप्रद्योत के समकालीन थे, जो भगवान् का समकालीन राजा था । अतः उनका सम्बन्ध पार्श्वनाथ भगवान् से जोड़ना, वस्तुतः एक भूल है । उन्होंने दूसरी भूल यह कि, उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि जैन ग्रंथों में भी उन्हें ही प्रत्येक बुद्ध बताया गया है ।
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