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भक्त राजे
५७३ कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन राजा ससैन्य भ्रमण करने निकला। वहाँ नगर के बाहर एक आम्रवृक्ष देखा । राजा ने उसमें से एक मंजरी तोड़ ली। पीछे आते लोगों ने भी उस पेड़ में से मंजरी-पल्लव आदि तोड़े। लौट कर आते: हुए राजा ने देखा कि वह वृक्ष ढूँढ मात्र रह गया है।'
कारण जानने पर राजा को विचार हुआ—"अहो ! लक्ष्मी कितनी चपल है।" इस विचार से प्रतिबोध पाकर राजा प्रत्येकबुद्ध हो गया।
इस प्रकार चारों प्रत्येक बुद्ध (अपने-अपने पुत्रों को राजकाज सौंपकर) एक बार पृथ्वी पर विचरते हुए क्षितिप्रतिष्ठ-नामक नगर में आये । वहाँ चार द्वार वाला एक यक्ष चैत्य था। उस चैत्य में पूर्वाभिमुख एक यक्ष प्रतिना थी।
उस चैत्य में करकंडु पूर्व के द्वार से आये । उसके बाद द्विमुख दक्षिण द्वार से आये। उन्हें देखकर यक्ष के मन में विचार हुआ-"इस मुनि से पराङ्मुख रह सकना मेरे लिए सम्भव नहीं है।" यह विचार कर उसने दक्षिण ओर मुख कर लिया।
पीछे पश्चिम द्वार से नमि आये । उनका विचार कर यक्ष ने तीसरा मुख उनकी ओर कर लिया।
अंत में नग्गति उत्तर ओर के द्वार से आये और यक्ष ने एक मुख उधर भी कर लिया। इस प्रकार वह चतुर्मुख हो गया । ___ करकंड को बाल्यावस्था से खुजली होती थी। उन्होंने बाँस की शलाका लेकर कान खुजलाया और उस शलाका को ठीक से रख लिया। उसे देख कर द्विमुख बोले- "हे मुनि ! आपने राज्यादि सब का त्याग कर दिया फिर यह शलाका किसलिए अपने पास रखे हो ?"
१-कुम्भकार जातक में इसके प्रतिबोध का कारण कंकण की ध्वनि होना लिखा है।
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