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________________ तीर्थकर महावीर प्रवेश कर गया । उसमें प्रवेश करते ही राजा ने एक अति सुन्दर कन्या देखी। राजा को देखते ही वह कन्या उठकर खड़ी हो गयी और उसने राजा को उच्चासन दिया। एक दूसरे को देखते ही दोनों में प्रेम हो गया । वहाँ बैठने के बाद राजा ने उस सुन्दरी से उसका परिचय पूछा और उस एकान्तवन में वास करने का कारण जानना चाहा । पर, उस सुन्दरी ने उत्तर दिया--"पहले मेरे साथ विवाह कर लो। फिर मैं, आपको सभी बातें बताऊँगी। यह सुनकर राजा उस भवन में स्थित जिनालय में गया । उसके निकट ही एक मनोहर वेदिक थी। वहाँ जिन को प्रणाम करने के पश्चात् राजा ने उस युवती से गंधर्व-विवाह कर लिया। रात्रि भर वहाँ रहने के पश्चात् , दूसरे दिन प्रातःकाल जिनेन्द्र की वंदना करके राजा उस भवन के सभामंडप में स्थित सिंहासन पर आसीन हुआ । रानी उनके निकट अर्धासन पर बैठी। और, फिर उसने कथा प्रारम्भ की __"क्षितिप्रतिष्ठ-नामक नगर में जितशत्रु-नामका एक राजा था। एक बार उसने एक बड़ी भारी चित्रसभा बनवायी और नगर के चित्रकारों को बुलाकर सब को बराबर भाग बाँट कर, उस चित्रसभा को चित्रित करने का आदेश दिया। उन चित्रकारों में चित्रांगद नामक एक अति बूढ़ा चित्रकार था । उस बूढ़े चित्रकार को पुत्र नहीं था, अतः कोई उसके काम में सहायता करने वाला न था। "उस बूढ़े चित्रकार को कनकमंजरी नामक एक कन्या थी। वह सदैव अपने पिता के लिए खाना उस चित्रसभा में लाती । एक दिन वह कन्या अपने पिता के लिए भोजन लेकर चित्रसभा की ओर जा रही थी कि, इतने में उसने देखा कि एक व्यक्ति भीड़ से भरे राजमार्ग पर घोड़ा दौड़ाते चला आ रहा था । कनकमंजरी डर गयी । किसी प्रकार वह अपने पिता के पास पहुंची, तो उसे देखकर उसका पिता बड़ा प्रसन्न हुआ । जब तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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