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________________ भक्त राजे . ५६६ राजा को स्वप्न में दिखे पर्वत के स्मरण से उन्हें जातिस्मरणशान हो गया और केश लोचकर वह साधु वेश में पृथ्वी पर विचरण करने लगे। (४) नग्गति' गांधार-देश में पुंड्रवर्द्धन नामक नगर था। उस नगर में सिंहरथनामक राजा राज्य करता था। एक बार उत्तरापथ के किसी राजा ने सिंहरथ को दो घोड़े भेंट किये । उनमें एक घोड़ा वक्र शिक्षा वाला था। राजा उस वक्र शिक्षा वाले घोड़े पर बैठा और उनका कुमार दूसरे घोड़े पर । इस प्रकार राजा सिंहरथ अपनी सेना के साथ नगर के बाहर क्रीड़ा करने निकला। - घोड़े की चाल तेज करने के लिए राजा ने उस घोड़े को जो चाबुक लगाया तो वह घोड़ा बेतहाशा भागा । घोड़े को रोकने के लिए राजा रास को जितना ही खींचता, घोड़ा उतनी ही तेजी से भागता । इस प्रकार 'भागता-भागता घोड़ा राजा को १२ योजन दूर एक जंगल में ले गया। रास खींचे-खींचे थक जाने से राजा ने घोड़े की रास ढीली कर दी । रास ढीली होते ही घोड़ा रुक गया । घोड़े के रुक जाने से राजा को यह ज्ञात हो गया कि, यह घोड़ा उल्टी शिक्षा वाला है। राजा ने घोड़े को एक वृक्ष के नीचे बाँध दिया और फल आदि खाकर पेट भरा । उसके बाद रात बिताने की दृष्टि से, राजा पहाड़ के ऊपर चढ़ा । वहाँ उसने सात मंजिल ऊँचा एक महल देखा। राजा उस महल में १-कुम्भकार-जातक में उसे तक्षशिला का राजा बताया गया है और नाग नग्गजी दिया है। २-इस नगर के सम्बन्ध में हमने इस ग्रंथ के भाग १, पेज ५१-५२ पर विशेष विवार किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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