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तीर्थकर महावीर मध्य रात्रि में उसके पेट का गर्भ चलायमान हुआ। पेट में बड़ी पीड़ा हुई और उसे एक पुत्र-रत्न पैदा हुआ। युगवाहु को नाम-मुद्रिका पहना कर और रत्नकम्बल में लपेट कर बच्चे को उस कदली में रखकर वह सरोवर में स्नान करने गयी। इतने में एक जलहस्ती ने उसे सूंड में पकड़ा और गेंद की तरह आकाश में उछाला ।
उस समय एक युवा विद्याधर आकाशमार्ग से नंदीश्वर द्वीप की ओर अपने साधु पिता की वंदना करने जा रहा था । उसने रानी को लोक लिया और उसे वैताव्य-पर्वत पर ले गया। वहाँ मदनरेखा अपने बच्चे के लिए रुदन करने लगी। उस विद्याधर ने भी मदनरेखा से विवाह का प्रस्ताव किया । मदनरेखा ने उससे अपने पुत्र के पास पहुँचा देने के लिए आग्रह किया तो उसने कहा-'तुम्हारे पुत्र को मिथिला का राजा पद्मरथ उठा ले गया। वह निष्पुत्र है; अतः उसने उस पुत्र को पालने के लिए अपनी पत्नी पुष्पमाला को दे दिया है।"
__ रानी मदनरेखा ने अपने पतिव्रत-धर्म की रक्षा के लिए उस विद्याधर से कहा-"पहले आप अपने पिता की वंदना कर लें; उसके बाद ही कुछ होगा।"
वह विद्याधर अपने पिता के पास गया तो उसके पिता ने उसे जो उपदेश दिया, उससे उस विद्याधर के ज्ञानचक्षु खुल गये और अपने प्रस्ताव के लिए मदनरेखा से वह क्षमायाचना करने लगा। कालान्तर में वह रानी मदनरेखा साध्वी हो गयी ।
मदनरेखा के पुत्र के प्रभाव से शत्रुराजा भी राजा पद्मरथ को नमन करने लगे। इससे प्रभावित होकर पद्मरथ ने उस पुत्र का नाम नमि
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