________________
५६४
तीर्थकर महावीर बाद में चंडप्रद्योत से हुआ। हमने प्रद्योत के प्रसंग में मुकुट के लिए हुए युद्ध और कन्या के विवाह का विस्तृत विवरण दे दिया है । ___एक बार इन्द्र-महोत्सव आया । नगरवासियों ने इन्द्रध्वज की स्थापना की । वह इन्द्रध्वज, झंडियों, पुष्पों, घंटियों आदि से सज्जित किया गया । लोगों ने उसकी पूजा की। पूर्णिमा के दिन राजा भी उत्सव में सम्मिलित हुआ।
पूजा समाप्ति के बाद नगर-निवासियों ने उस ध्वज के आभूषण आदि तो निकाल लिए और काष्ठ को इसी प्रकार फेंक दिया । बच्चों ने मल-मूत्र से उस काष्ठ को अशुचि करना प्रारम्भ किया।
एक दिन राजा द्विमुख ने उस स्थिति में उस काष्ठ को देखा और उन्हें वैराग्य हो गया। अपने केशों का लोचकर वह प्रत्येकबुद्ध हो गये और मुनिवेश धारण करके पृथ्वी पर विचरण करने लगे।
नमि' मालव-देश में स्वर्ग को भी नीचा दिखाने वाला सुदर्शन-नामक नगर था । उस नगर में मणिरथ नामक राजा था। उस मणिरथ के भाई का नाम युगबाहु था । वही युगबाहु युवराज था । उस युगबाहु की पत्नी का नाम मदनरेखा था। वह मदनरेखा शीलव्रत धारण करने वाली थी। उसे चन्द्रयश-नामक एक पुत्र था ।
एक दिन मणिरथ ने मदनरेखा को देखा और कामपीड़ित हो गया । और, उसे अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए नाना भाँति के वस्त्राभूषण उसके पास दूति द्वारा भेजने लगा।
एक दिन एकान्त में मदन रेखा को देखकर मणिरथ ने कहा-'हे सुन्दरी ! यदि तुम मुझे पुरुष-रूप में स्वीकार करो तो मैं तुम्हें राज्य-लक्ष्मी
१-कुम्भकार जातक में इसका नमि न होकर निमि दिया गया है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org