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________________ भक्त राजे ५६३ एक बूढ़ा बैल खड़ा कर दिया गया । इसे ही देखकर करकंडु को वैराग्य हुआ और वह प्रत्येकबुद्ध हो गया । ( २ ) द्विमुख' पांचाल देश में काम्पिल्य-नामक नगर में जय नामक राजा था। उनकी रानी का नाम गुणमाला था । एक दिन देश-देशान्तर से आये एक दूत से राजा ने पूछा - " ऐसी कौन-सी वस्तु है, जो दूसरे राजाओं के पास है और मेरे पास नहीं है ।" इस प्रश्न को सुनकर दूत ने कहा - " महाराज आपके राज्य में चित्रशाला नहीं है । " राजा ने चित्रकारों को बुला कर सुन्दर चित्र बनाने की आज्ञा दी । उस चित्रसभा बनाने के लिए पृथ्वी की खुदाई हो रही थी, तो पाँचवें दिन पृथ्वी में से एक रत्नमय देदीप्यमान मुकुट निकला | उस मुकुट में स्थान-स्थान पर पुतलियाँ लगी थीं । एक शुभ दिवस देखकर राजा ने सिंहासन पर बैठकर उस दिव्य मुकुट को धारण किया । उसे धारण करने से जय राजा द्विमुख दिखने लगे । अनुक्रम से द्विमुख राजा को सात पुत्र हुए। पर, उन्हें एक भी पुत्री नहीं थी । रानी ने मदन नामक यक्ष की मानता की । रानी को स्वप्न में पारिजात वृक्ष को मंजरी दिखलायी पड़ी । अतः जब रानी को पुत्री हुई तो रानी ने उस कन्या का नाम मदनमंजरी रखा । इस कन्या का विवाह १ - बौद्ध ग्रन्थों में इस राजा का नाम दुर्मुख लिखा है । और वैराग्य का कारण भी भिन्न दिया है । ( देखिये कुम्भकार जातक ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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