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तीर्थंकर महावीर
ब्राह्मण ने बाँस दे तो दिया पर; उसने पीछे उसे मार डालने का पड्यंत्र किया । चांडाल समाचार सुन कर अपनी पत्नी और बच्चे के साथ वहाँ से भाग निकला । और कांचनपुर चला गया । जिस दिन यह परिवार वहाँ पहुँचकर विश्राम कर रहा था, उसी दिन वहाँ का राजा मर गया था । उसे पुत्र नहीं था; अतः राजा चुनने के लिए घोड़ा छोड़ा गया था। घोड़े ने आकर चांडाल के घर पले लड़के की प्रदक्षिणा की और उसके निकट ही ठहर गया ।
अब यह करकंडु कांचनपुर का राजा हो गया, यह समाचार जान वह ब्राह्मण-पुत्र भी आया और उसने चम्पा में एक गाँव माँगा । करकंडु ने दधिवाहन के नाम एक ग्राम उस ब्राह्मण को दे देने के लिए पत्र लिखा ।
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दधिवाहन इस पत्र को देखकर बड़ा क्रुद्ध हुआ । इसे अपना अपमान समझकर करकंडु ने चम्पा पर आक्रमण कर दिया ।
रानी पद्मावती ने पिता-पुत्र के बीच परिचय करा कर युद्ध बंद कराया । दधिवाहन ने इसे चम्पा का भी राज्य दे दिया और स्वयं साधु हो गया ।
इसी करकंडु ने कलिकुण्ड तीर्थ की स्थापना करायी ( विविध तीर्थकल्प, चम्पापुरीकल्प, पृष्ठ ६५ )
इस करकंडु को गौवों से बड़ा प्रेम था । एक दिन वह अपने गोकुल मैं गया था कि उसने एक अति सुंदर बछड़े को देखा । करकंडु इतना प्रसन्न हुआ कि उसने आज्ञा की । कि उस बछड़े को उसकी माँ का सब दूध पिलाया जाये |
वह बछड़ा कालान्तर में युवा हुआ और उसके भी कुछ वर्षों के बाद जब करकंडु ने गोकुल में उस बछड़े को लाने को कहा तो उसके सामने
१ - कांचनपुर कलिंग की राजधानी थी और २५ || आर्य देशों में इसकी गना थी । वसुदेग हिंडी ( पेज १११ ) में कुछ व्यापारियों का उल्लेख मिलता है जी रत्नादि लेकर लंकादीप से कांचनपुर आये थे ।
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