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भक्त राजे
५६१ एक साधु ने एक बाँस दिखा कर कहा - " यह लकड़ी चार अंगुल बड़ी होने पर जो इसे धारण करेगा वहा राजा होगा ।"
एक ब्राह्मण का लड़का सुन रहा था । उसने वह बाँस जमीन के नीचे चार अंगुल तक खोदकर काट लिया । इस चांडाल के घर पले लड़के में और ब्राह्मण पुत्र में झगड़ा हो गया । दोनों न्यायाधीश के यहाँ गये 1 न्यायाधीश ने एक बाँस के लिए इतना बात बढ़ाने का कारण पूछा तो चांडाल के घर पले लड़के ने कहा - " जो यह बाँस को धारण करेगा, वह राजा होगा | यह लकड़ी मेरे स्मशान की है; अतः मुझे मिलनी चाहिए ।" न्यायाधीश ने लकड़ी उसे दिला दी और कहा - " अच्छा राज्य मिले तो इस ब्राह्मण को ध्यान में रखना उसे एक ही गाँव दे देना ।"
१- दंडों के लक्षण के सम्बंध में उत्तराध्ययन की नेमिचन्द्राचार्य की टीका में निम्नलिखित गाथाएँ दी हुई हैं:
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एगपव्वं पसंसंति, दुपव्वा कलहकारिया | तिपव्वा लाभसंपन्ना, चउपव्वा मारणंतिया ॥ १ ॥
पंचपव्वा उ जालट्ठी, पंथे कहलनिवारिणी । छपव्वा य श्रार्यको सत्तपव्वा श्रारोगिया ॥ २ ॥ चउरंगुलपइट्ठाणा, श्रट्ठगुल समूसिया । सत्तपव्वा य जा लट्ठी, मत्तगय निवारिणी ॥ ३ ॥ श्रपव्वा श्रसंपत्ती, नवपव्वा जसकारिया | दसपव्वा उ जा लट्ठी, तहियं सव्वसंपया ॥ ४ ॥
का कीडक्खइया, चित्तलया पोल्लडा च दड्डा य । लट्ठी य उब्भसुक्का, वज्जेयव्वा पयरोणं ॥ ५ ॥ घणवद्धमाणापव्वा, निद्वावत्रेण एगवन्नाय । एमाइलक्खण जुआ, पसत्थालट्ठी मुणेयब्वा ॥ ६ ॥
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पत्र १३४-१
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