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तीर्थकर महावीर
पद्मावती रानी दंतपुर पहुँची । नगर में घूमते-घूमते उसने उपाश्रय में साध्वियों को देखा और उनके पास जाकर उसने वंदना की। साध्वियों ने रानी से परिचय पूछा । रानी ने उनसे अपना समस्त हाल कह दिया पर गर्भ की बात उनसे गुप्त रख ली।
रानी की कथा सुनकर साध्वियों ने उसे उपदेश दिया । उपदेश सुनकर रानी को वैराग्य हुआ और उसने दीक्षा लेली । जब रानी का गर्भ वृद्धि को प्राप्त हुआ तो साध्वियों ने पूछा--"यह क्या ?" अब रानी ने सारी बातें सच-सच कह दी। ___ गर्भ के दिन पूरे होने पर शैयातर के घर जाकर रानी ने प्रसव किया
और नवजात शिशु को रत्नकम्बल में लपेटकर पिता की नाममुद्रा के साथ स्मशान में छोड़ दिया । बच्चे की रक्षा के लिए रानी स्मशान में ही एक जगह छिप कर देखने लगी। इतने में स्मशान का मालिक चांडाल आया । वह निष्पुत्र था । उसके बच्चे को उठा लिया और उसकी पत्नी उसका पालन-पोषण करने लगी। छिप कर रानी ने उस चांडाल का घर देख लिया। रानी जब उपाश्रय में आयी तो साध्वियों ने पुनः उसके गर्भ की बात पूछी । रानी ने कहा--"मृत पुत्र हुआ था । उसे फेंक दिया ।"
पर, रानी पुत्रस्नेह के कारण अक्सर चांडाल के घर जाती और भिक्षा में मिली अच्छी वस्तु को उस बच्चे को दे देती।
जब वह बालक बड़ा हुआ तो वह अपने समान उम्र के बच्चों में राजा बनता । एक दिन वह स्मशान में था कि दो साधु चले जा रहे थे।
१-नेमिचन्द्र की टीका (पत्र १३४-१ ) में आता है कि, राजा बन कर वह समवयस्क लड़कों से कर माँगता। लड़के पूछते कर में क्या दें तो कहता मुझे खुजलाओ। ( ममं कंडुयह । ताहे से 'करकंडु' त्ति नामं कयं) इसी कारण बच्चे उमे करकंडु कहने लगे। ऐसा ही शान्त्याचार्य को टीका पत्र ३०१-२, भावविजय की टीका श्लोक ६५, पत्र २०५-१ आवश्यक हारिभद्रीय टीका पत्र ७१७२ तथा उपदेशप्रासाद, २४-३४६ में भी लिखा है।
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