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________________ भक्त राजे और उसके पूछने पर अपना परिचय बता दिया । तापस ने रानी को आश्वासन देते हुए कहा-"मैं भी चेटक का सगोत्री हूँ। अतः चिन्ता करने की अब कोई बात नहीं है ।” उस तापस ने वन के फलों से रानी का स्वागत किया । और, कुछ दूर साथ जाकर गाँव दिखा कर बोला-"हे पुत्री हल चली भूमि पर मैं नहीं चल सकता। अतः तुम अकेले सीधे चली जाओ। आगे दन्तपुर' नामक नगर है। वहाँ दंतवक्र राजा है । उस पुरी से किसी के साथ चम्पा चली जाना।" १-कुम्भकार-जातक ( जातक हिन्दी-अनुवाद, भाग ४, पेज ३७ ) में करकंडु को दन्तपुर का राजा बताया गया है। उक्त जातक में करकंहु का जीवन-चरित्र वस्तुतः नहीं के बराबर है । जैन-स्रोतों में करकंडु के जीवन का वर्णन बौद्ध-स्रोतों की अपेक्षा कहीं अधिक है । जैन-कथाओं से स्पष्ट है कि, करकंडु की माँ दंतपुर पहुँची थी, वहीं वह साध्वी हुई और वहीं करकंडु का जन्म हुआ। राजा तो वह बाद में कांचनपुर का हुआ। बौद्ध स्रोतों से पता चलता है कि यह दंतपुर कलिंग की राजधानी थी (दीघनिकाय, महागोविंदसुत्त, हिन्दी-अनुवाद, पेज १४१)। उक्त सूत्र में दंतपुर के राजा का नाम सत्तभू लिखा है। वह रेणु का समकालीन था। गंगा इन्द्रवर्मन के जिर्जिगी -प्लेट में इसे अमरावती से भी अधिक सुंदर नगर बताया गया है। ( एपीग्राफिका इंडिका, जिल्द २५, भाग ६, अप्रैल १९४०, पेज २८५ ) महाभारत के उद्योगपर्व में [अ० ४७ ] में भी दंतपुर अथवा दंतकपुर नाम आता है। इस नगर की पहचान विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न स्थलों से की हैं। कुछ राज. महेन्द्री को प्राचीन दंतकपुर बताते हैं। कुछ पुरी को प्राचीन काल का दंतपुर मानते हैं। मिलवेन लेवी ने इसकी पहचान टालेमी के पलौरा से की है। ( देखिए, 'प्रीएरियन ऐंड प्रीवेडियन इन इंडिया, पेज १६३-१७५ ), सुब्बाराय ने वंशधरा नदी के दक्षिणी तट पर चिकाकोल स्टेशन से ३ मील की दूरी पर स्थित एक किले के अवशेष को दंतपुर माना है ( हिस्टारिकल ज्यागरैफी श्राव ऐंशेंट इंडिया, पेज १४६ ।) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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