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तीर्थकर महावीर पत्नी का नाम पद्मावती था। वह वैशाली के महाराजा चेटक की पुत्री थीं। .
एक बार रानी गर्भवती हुई । उस समय गर्भ के प्रभाव से उन्हें यह दोहद हुआ कि, "मैं पुरुष वेश धारण करके हाथी पर चहूँ और राजा मेरे मस्तक पर छत्र लगाएँ। और, इस रीति से में आरामादिक में विचरूँ।” पर, लज्जावश रानी यह दोहद किसी से कह न सकी । अतः कृषकाय होने लगी । एक दिन राजा ने उनसे बड़े आग्रह से पूछा तो रानी ने अपने मन की बात कह दो ।
अतः राजा एक दिन रानी को हाथी पर बैठा कर उनके मस्तक पर छत्र लगा कर सेना आदि के साथ. नगर से बाहर निकल कर आराम में गये।
उस समय वर्षा ऋतु का प्रारम्भ था । छोटी-छोटी बूंदें पड़ रही थीं। अतः हाथी को विध्यक्षेत्र की अपनी जन्मभूमि का स्मरण हो आया और हाथी जंगल की ओर भागा। सैनिकों ने रोकने की चेष्टा की .. पर निष्फल रहे ।
हाथी जंगल की ओर चला जा रहा था कि, राजा को एक वटवृक्ष दिखायी दिया । राजा ने रानी से कहा-"देखो, यह सामने वटवृक्ष आ रहा है । जब हाथी वहाँ पहुँचे तो तुम उसे पकड़ लेना।" जब वृक्ष निकट आया तो राजा ने तो डाल पकड़ ली; पर रानी उसे पकड़ने में चूक गयौं । राजा ने जब वृक्ष पर रानी को नहीं देखा तो बहुत दुखी हुए।
स्वस्थमन होने पर, राजा तो चम्पा लौट आये पर हाथी रानी को एक निर्जन जंगल में ले जाकर स्वयं एक सरोवर में घुस गया। सरोवर में अवसर देखकर रानी किसी प्रकार हाथी से उतर गयीं और तैर कर किनारे आयीं।
उस जंगल की भयंकरता देखकर, रानी विलाप करने लगी। पर, . अपनी असहायावस्था जानकर हिम्मत बाँधकर एक ओर चल पड़ी। काफी दूर जाने पर उन्हें एक तापस मिला। रानी ने तापस को प्रणाम किया
जन्मभूमि का स्मरण हो आया
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