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भक्त राजे
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प्राप्त करे, उसे प्रत्येकबुद्ध कहते हैं— जैसे करकंडु मुनि ! इन जीवों की सिद्धिप्राप्ति में प्रस्तुत भव में गुरु के उपदेश की अपेक्षा नहीं होती, यह चात ध्यान में रखनी चाहिए ।"
और, उसकी पादटिप्पणि में लिखा है कि प्रत्येकबुद्ध और स्वयंबुद्ध में खासकर ( १ ) बोधि ( २ ) उपाधि ( ३ ) श्रुत और ( ४ ) वेष इन चार अपेक्षाओं की भिन्नता होती है ।
बौद्ध ग्रन्थों में प्रत्येक बुद्ध - बौद्धग्रन्थों में दो प्रकार के बुद्ध बताये गये हैं—- १ तथागतबुद्ध और २ प्रत्येकबुद्ध । पर, टीकाकारों ने चार प्रकार के बुद्ध गिनाये हैं—१ सबन्नुबुद्ध २ पच्चेकबुद्ध ३ चतुसच्च बुद्ध ४ सुतबुद्ध' और प्रत्येक बुद्धों के सम्बन्ध में कहा गया है :
" उन्हें स्वतः ज्ञान होता है पर वे जगत को उपदेश नहीं करते ......." - ( डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, भाग २, पृष्ठ ६४ तथा २९४ )
और, बौद्ध ग्रन्थों में भी वे ही चार प्रत्येकबुद्ध बताये गये हैं, जिनका उल्लेख जैन-ग्रन्थों में है । ( जातक हिन्दी अनुवाद भाग ४, कुम्भकारजातक, पृष्ठ ३६ )
ये चारों प्रत्येकबुद्ध श्रावक थे और बाद में वाह्य निमित्त देखकर प्रत्येक बुद्ध हुए ।
इन चारों प्रत्येक बुद्धों का जीवनचरित्र उत्तराध्ययन ( नेमिचन्द्राचार्य की टीका सहित ) अध्ययन ९, पत्र १३३ - १ से १४५-२ तक में आती है ।
( १ )
कर कंडु
चम्पानगरी में दधिवाहन नामका राजा राज्य करता था । उनकी
१ - डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, भाग २, पृष्ठ २६४
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