________________
५५६
तीर्थंकर महावीर
बोधिः बोधिप्रत्ययमपेक्ष्य च बुद्धाः सन्तो नियमतः प्रत्येकमेव विहरन्ति न गच्छ्वासिन इव संहता ।
- राजेन्द्राभिधान, भाग ७, पृष्ठ ८२८ ऐसा ही नवतत्त्व की सुमङ्गला टीका पत्र १६५-२ में भी है । विचारसारप्रकरण (मेहसाना, अनुवाद - सहित ) में पृष्ठ १५३ गा० ८४९ में भी ऐसा ही उल्लेख है ।
तत्त्वार्थाधिगम सूत्र ( भाष्य तथा टीका सहित, हीरालाल - सम्पादित, भाग २, पृष्ठ ३०४ ) में बारह बातों द्वारा सिद्धों की विशेष विचारणा की गयी है—
क्षेत्र-काल- गति लिङ्ग-तीर्थ चरित्र प्रत्येक बुद्ध बोधित-ज्ञानाऽवगाना - ऽन्तर- सख्या - ऽल्पबहुत्वतः साध्याः ॥ १०-७॥ इसमें प्रत्येकबुद्ध शब्द पर टीका करते हुए कहा गया है
तथा परः प्रत्येकबुद्ध सिद्धः प्रत्येकमेकमात्मानं प्रति केनचिन्निमित्तेन सज्जातजातिस्मरणाद् वल्कलचीरि प्रभृतयः करकरण्डवादयश्च प्रत्येकबुद्धाः
- पृष्ठ ३१०
ये प्रत्येकबुद्ध किसी बाहरी एक वस्तु को देखकर बुद्ध होते हैं ( कथा में प्रत्येक के बुद्धत्व प्राप्ति का विवरण दिया है ) वे साधु के समान विहार करते हैं; परन्तु गच्छ में नहीं रहते ।
आर्हत् दर्शनदीपिका ( मंगलविजय - लिखित, प्रो० हीरालाल कापड़ियासम्पादित तथा विवेचित, पृष्ठ ११५४ ) में प्रत्येकबुद्ध के सम्बन्ध में लिखा है
" संध्या समय के बादल जिस प्रकार रंग बदलते हैं, उसी प्रकार संसार में पौद्गलिक वस्तु क्षणभंगुर हैं, इस प्रकार विचार करके, अर्थात् किसी प्रकार वैराग्यजनक निमित्त प्राप्त करके, केवलज्ञान प्राप्त करके जो मोक्ष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org