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________________ ५५३ भक्त राजे निर्माण-शास्त्र के विकास में प्रारम्भिक रूप का प्रतिनिधित्व करती है। इस गुफा में ७ फुट x ६ फुट का एक कमरा है और ७ वर्ग फुट का एक बराम्दा है। इसमें पीछे की दीवाल की चट्टान में ही मूर्ति खोदी हुई थी। अब वह मूर्ति बहुत-ही जीर्ण शीर्ण हो गयी है। उदयगिरि की गुफा संख्या १० को कनिंघम ने जैन-गुफा बताया है। इसका कारण उन्होंने यह बताया है कि, इसमें पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा स्थापित थी। इसमें कई कमरे हैं । इस गुफा में एक शिलालेख भी है : नमः सिद्धेभ्यः श्री संयुतानाम् गुनतो नगर से आधे मील की दूरी पर एक टोला है और उस टीले से आधे मील की दूरी पर बेतवा के तट पर हाथी पर चढ़े एक सवार की विशाल मूर्ति है। प्राचीन पुरातत्त्वविदों ने हाथी की मूर्ति का उल्लेख तो किया, पर जैन-साहित्य से अनभिज्ञ होने के कारण वे इसका महत्त्व न आँक सके । हम पहले इस नगर के निकट के पर्वत के गजानपद कहे जाने का उल्लेख कर चुके हैं । अतः उसे यहाँ दुहराना नहीं चाहते। वर्तमान स्थिति यह है कि, प्राचीन विदिशा आज भिलसा के नाम से विख्यात है। भिलसा से दो मील उत्तर बेसनगर-नामक ग्राम है। विदिशा से २ मील की ही दूरी पर उदयगिरि की प्रसिद्ध गुफाएँ हैं । कनिंघम ने यहाँ के ऐतिहासिक स्थानों की परस्पर दूरी इस प्रकार दी हैं १-कालिदास-वर्णित मध्यप्रदेश-चतुर्धाम, डाक्टर हरिहर त्रिवेदी-लिखित पृष्ठ ३८ । २-रिपोर्ट श्राव टूर्स इन बुंदेलखंड ऐंड मालवा १८७४-७५-१८७६.७७ पृष्ठ ४६-४७ ३-वही, पृष्ठ ५३ ४-रिपोर्ट, पाव टूर्स इन बुंदेलखंड ऐंड मालवा १८७४-७५.१८७६-७७ कनिंघम लिखित, पष्ठ ४० ५-देखिए पृष्ठ ५४८ ६-मध्यप्रदेश चतुर्धाम, पृष्ठ-३५ ७-भिल्स-टोप्स, पृष्ठ ७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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