SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 620
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२ तीर्थंकर महावीर प्रसिद्ध बताया है । ' जातकों में इस राज्य को तलवार के लिए प्रसिद्ध बताया गया है । कालिदास ने विदिशा के सम्बंध में लिखा है:त्वय्यासन्ने परिणतफलश्याम जम्बूवनान्ताः संपत्स्यन्ते कतिपयदिन स्थायिहंसा दशार्णाः ॥ - चारों ओर पके जामुन के फलों से लदे हुए वृक्षों से वनश्री अधिक सुहावनी दिखायी देगी, और इस आनन्द के कारण सुदूरवर्ती मानसरोवर के हंस भी वहाँ खिंचे आयेंगे चाहे वे वहाँ कुछ ही दिन क्यों न ठहरें । कालिदास ने जिस प्रकार हंसों और जम्बू के वृक्षों का उल्लेख किया है, ठीक वैसा ही हंस और जम्बू' का उल्लेख आवश्यक चूर्णि में भी है । विदिशा के आसपास जो खोदायी हुई है, उसमें बहुत-सी ऐसी ऐतिहासिक सामग्री मिली है, जो जैन- दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं | बेसनगर से २ मील दक्षिण-पश्चिम की दूरी पर उदयगिरि में २० गुफाएँ हैं, उनमें दो गुफाएँ संख्या १ और २० जैन - गुफाएँ हैं । शिल्पशास्त्र की दृष्टि से गुफा नम्बर १ रोचक है; क्योंकि वह भारत में मन्दिर - १ – कलिङ्गाङ्गगजाः श्रेष्ठाः प्राच्याश्चेति करूशजाः - दशाश्वापरान्ताश्च द्विपानां मध्यमा मताः सौराष्ट्रकाः पाञ्चजनाः तेषां प्रत्यवरास्स्मृताः सर्वेषां कर्मणा वीर्य जवस्तेजश्च वर्धते कौटिलीयं अर्थशास्त्र - शामाशास्त्री सम्पादित, ५४५० २ - दसन्नकय तिखिंधारं असिम् ३ - मेघदूत ( काशीनाथ बापू-सम्पादित ) श्लोक २३, पृष्ठ १४ ४ - श्रावश्यकचूरि-पत्र ४७७ ५ - आवश्यकचूर्णि पत्र ४७ Jain Education International - जातक III, पेज ३३८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy