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तीर्थङ्कर महावीर मन्यते, तर्हि वज्रस्वामिनः स्वर्गमनात्प्रागपि स गिरीरथावर्त्तनामाऽऽसीदिति सङ्गच्छेत ॥'
इससे स्पष्ट है कि 'रहावत' विदिशा के पास ही था । निशीथ चूर्णि में भी ऐसा ही उल्लेख आया है।
'जैन-परम्परा नो इतिहास' नामक ग्रन्थ में लेखक ने अपनी कल्पना भिड़ाकर इसे मैसूर राज्य में बताया है और वहाँ की बड़ी मूर्ति को वज्र स्वामी की मूर्ति लिख दिया है। स्पष्ट है और प्रमाणित है कि मैसूर राज्य की वह मूर्ति बाहुबली की है। तीर्थकल्प में स्पष्ट उल्लेख है-"दक्षिणापथे गोमटदेवः श्री बाहुबलिः । लेखक ने न तो इस ओर ध्यान दिया और न शास्त्रीय उल्लेखों की ओर और वह अपनी कल्पना भिड़ा गये। उनकी दूसरी कल्पना यह है कि वज्रस्वामी का दूसरा नाम द्वितीय भद्रबाहु हैं । यह बात भी सर्वथा अप्रमाणित है । ___ रथावर्त के ही निकट वासुदेव और जरासंध में युद्ध हुआ था। रथावर्त का उल्लेख महाभारत में भी आता है। ___ आर्य महागिरि और आर्य मुहस्ति पाटलिपुत्र से यहाँ आये और जीवित प्रतिमा का वंदन करके आर्यमहागिरि गजाग्रपद तीर्थ की वंदना करने गये । बाद में आर्यमहागिरि इसी गजाग्रपदतीर्थ में अनशन करके
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१-श्रीकल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी, पेज २८२ । २-निशीथ पेज ६० । ३-पेज ३३७ । ४-विविध तीर्थ कल्प. पेज ८५ । ५-जैन-परम्परा नो इतिहास, पेज ३३७ । ६-श्रावश्यकचूर्णि, पूर्व भाग, पत्र २३५ ।
७-महाभारत ( कृष्णाचार्य व्यासाचार्य सम्पादित) वनपर्व, अध्याय ८२, श्लोक २२, पेज १४१ ।
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