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________________ भक्त राजे ५४६ हाथी के पाँव के चिन्ह पर्वत पर पड़ गये। इससे उस पर्वत का नाम गजाग्रपदगिरि पड़ गया।' इस पर्वत का नाम इन्द्रपद भी है। इस नगर का नाम बेसनगर भी आता है। इसी का नाम रथावर्त भी था । वज्रस्वामी के निधन पर इन्द्र द्वारा रथ लेकर आने से इसका नाम रथावर्त पड़ा। यह रथावर्त भी गजानपद का ही नाम है इसका स्पष्टीकरण राजेन्द्रसूरि ने कल्पसूत्रप्रबोधिनी में स्पष्ट रूप से किया है:__ "असौ गिरिः प्रायो दक्षिण मालव देशीयां विदिशा (भिल्सां) समया किलाऽऽसीत् । आचारागनियुक्तौ 'रहावत्तनगं' इत्युल्लेखात् । प्राचाराङ्गनियुक्तिरचयिता श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामीति १-आवश्यक नियुक्ति दीपिका भाग २, गाथा १२७५ पत्र १०७-२ आवश्य चूर्णि, पत्र १५६ । २-वृहत्कल्पसूत्र भाष्य , विभाग ४, पेज १२६८-१२६६, गाथा ४८४१, में आता है "इन्द्रपदो नाम गजाग्रपदगिरिः" ३-ज्यागरैफिकल डिक्शनरी, नन्दलाल दे-लिखित, पेज २६ । . ४-आवश्यकचूर्णि पत्र ४०५, आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति ३०४-१, आवश्यक मलयगिरि की टोका, द्वितीय विभाग, पत्र ३६६-१ । ५-अट्ठावयमुज्जिते गयगपयए य धम्मचक्के य । पास रहावत्तनगं चमरुप्पायं च वंदामि ॥ ...'"एवं रथावर्ते पर्वते वैरस्वामिना यत्र पादपोपगमनं कृतं.... -आचाराग सटीक, श्रु० २, भावनाध्ययन, नियुक्ति गाथा ३३५, पत्र इस प्रसंग में चूणि में आया है "प्रावचने रथावित्त" -आचारांग चूर्णि, पत्र ३७४.२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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