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- तीर्थङ्कर महावीर पाताल में उसने धरणेन्द्र से वर माँगा कि ऐसा हो कि, मेरा नाम विख्यात् हो जाय और अविचल रहे । धरणेन्द्र ने उत्तर दिया कि चंडप्रद्योत राजा तुम्हारे नाम से एक अत्यंत सुन्दर नगर बसायेगा। यहाँ आने की जल्दी में तुमने आधी पूजा की है। अतः यह प्रतिमा कितने ही काल तक मिथ्यादृष्टिवालों द्वारा पूजित होगी। और 'भायलस्वामी सूर्य के नाम से विख्यात होगी । सूर्य मंदिर के कारण यह न केवल भायलस्वामी वरन् भास्वत भी कहा जाता था, जिसका अर्थ सूर्य है (आप्टे-संस्कृतइंगलिश-डिक्शनरी, भाग २, पृष्ठ ११९७ ) देखिये-डिनेस्टिक हिस्ट्री आव नादन इंडिया, एच० सी० राय-लिखित खण्ड २, नक्शा संख्या ४)
इसका एक अन्य नाम एड़ककक्ष' भी मिलता है। यह नाम जैनग्रन्थों में भी आया है। एड़कक्ष नाम पड़ने का कारण लिखा है कि एक श्राविका को उसका पति बहुत सताता था। अतः किसी देवता ने उसके पति की आखें निकाल ली। पर वह श्राविका अपने पति के प्रति निष्ठावान थी। अतः उसने तपस्या प्रारम्भ कर दी। फिर तत्काल मरे भेड़े की आँख उसके पति को लगा दी गयी । तब से वह आदमी एड़कक्ष कहा जाने लगा और उसकी नगरी का नाम एड़कक्षपुर पड़ गया।
जैन-ग्रन्थों में इस नगरी के गजाग्रपद नाम का भी उल्लेख आता है। कथा है-“दशार्णपुर के निकट दशार्णकूट था। इसी दशार्णकूट पर भगवान् महावीर ठहरे थे। जब भगवान् वहाँ थे, तो दशार्णभद्र हाथी पर बैठ कर भगवान् के प्रति आदर प्रकट करने गये। हाथी अपने अगले पाँव पर खड़ा हो गया।
१-पेटवत्थु २०, पेटवत्थु टीका ६९-१०५ डिक्शनरी श्राव पाली प्रापर नेम्स, भाग १, पेज ४५६ । २-आवश्यकचूणि भाग २, पत्र १५६.१५७
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