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________________ भक्त राजे ५४७ स्वामिगढ़े देवाधिदेवः' आता है । सम्पादकों ने पादटिप्पणि में 'भाइल' शब्द का रूपान्तर'भायल' दिया है । विविधतीर्थंकल्प के इस उल्लेख से संकेत मिलता है कि जिनप्रभसूर के समय में नगर का नाम 'भाइलस्वामीगढ़' था । जिनप्रभसूरि की यह उक्ति कि, नगर ही भाइलस्वामी कहा जाता था, शिलालेखों से भी प्रमाणित है ( देखिये हिस्ट्री आफ द' परमार डिनेस्टी-डी० सी० गांगुली -लिखित (१९३३) पृष्ठ १६१ | अल्ब - बरूनी ने अपने ग्रन्थ में लिखा है कि, नगर का नाम भी नगर के पूज्य देवता के नाम पर था (अल्बरूनीज इंडिया, भाग १, पृष्ठ २०२ ) और जिनप्रभसूरि द्वारा बाद में गढ़ लगाने का कारण यह था कि, वह गढ़ है ( इम्पीरियल गजेटियर इंटर-सम्पादित भाग २, पृष्ठ ९३ ) भाइलस्वामी-सम्बन्धी एक कथा का उल्लेख त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १० में कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने भी किया है । ' कथा है- "एक बार विदिशपुरी में भायलस्वामी नामक एक वणिक रहता था । उसे राजा ने विद्युन्माली द्वारा प्रकाशित गोशीर्षचंदन की देवाधिदेव की प्रतिमा पूजा करने के लिए दी। एक बार भायलस्वामी को पूजासाम्रगी लिए दो अत्यंत तेजवान् पुरुष दिखलायी पड़े। उन्हें देख कर भायलस्वामी ने उनसे पूछा - " आप कौन हैं ?' वे तेजवान पुरुष बोले- "हम लोग पाताल भवनवासी कम्बल-शम्बल नागकुमार हैं । यहाँ देवाधिदेव की पूजा करने की इच्छा से आये हैं ।" भायलस्वामी ने उनसे पाताललोक देखने की इच्छा प्रकट की । उन दोनों देवताओं ने भागलस्वामी को बात स्वीकार कर ली । पाताललोक देखने के उत्साह में भायलस्वामी देवाधिदेव की आधी पूजा करके उन देवताओं के साथ पाताल चला । १ - त्रिपष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग १२, श्लोक ५४०-५५६ पेज १५४-२ से १५५-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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