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भक्त राजे
५४३ से स्पष्ट है कि दशार्णभद्र को मुक्ति नहीं हुई। यह बात समवायांग-जो चौथा अंग-और नन्दी सूत्र से भी प्रमाणित है । अणुत्तरोववाओ सुकुलपच्चायाया......
-समवायांग (भावनगर ) पत्र २३५-१ --अणुत्तर विमान में उत्पत्ति और उत्तम कुल में जन्म
-वही पत्र २३६-२ अनुत्तरोपपातिकत्वे-उपपत्तिः, सुकुलप्रत्यावृत्तयः
-नंदीसूत्र ( मुथा ) पृष्ठ १३५ अनुत्तर-सर्वोत्तम विजयादि-विमानों में औपपातिक रूप से उत्पन्न होना, मनुष्य भव में फिर श्रेष्ठ कुल को प्राप्ति आदि
-वही पृष्ठ १३६ ___इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि, अनुत्तरोपपातिक में जिनके उल्लेख आते हैं, उनको पुनः मनुष्य-भव में उत्पन्न होना होगा । तब उसके बाद मुक्ति होगी। इन अंगों के आधार पर बाद की पुस्तकों में उल्लिखित मुक्ति की बात स्वीकार नहीं की जा सकती।
-दशार्ण
दशाणं देश का उल्लेख जैनों के २५॥ आर्य-देशों में' तथा बौद्धों के १६ महाजनपदों में मिलता है। इसका उल्लेख हिन्दू-वैदिक ग्रन्थों में भी प्रचुर मिलता है :
१-देखिए तीर्थकर महावीर, प्रथम भाग, पृष्ठ ४४ २-देखिए तीर्थकर महावीर, प्रथम भाग, पृष्ठ ५३
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