________________
५४२
तीर्थकर महावीर उसकी टीका (पत्र ५१०-२ ) में उसकी कथा दी गयी है । .. यद्यपि इन में से कुछ का उल्लेख अणुत्तरोववाइय में मिलता है, पर दशार्ण भद्र का उल्लेख वहाँ नहीं मिलता । अणुत्तरोववाइय में अब ३ अध्ययन हैं । प्रथम में जालि-मयालि आदि श्रेणिक के १० पुत्रों का, द्वितीय में दीदंत आदि श्रेणिक के १३ पुत्रों का और तीसरे में
धन्ने सुणक्खत्ते इसिदासे य ाहिए पेल्लए रामपुत्त य चन्दिमा पुट्टिमाइय ॥ पेढालपुत्ते अणगारे नवमे पोट्टिले इय । वेहल्ले दसमें वुत्ते इमेए दस अहिया ।।
१ धन्य, २ सुनक्षत्र, ३ ऋषिदास, ४ पेल्लक, ५ रामपुत्र, ६ चन्दिमा ७ पुहिमा, ८ पेठालपुत्र, ९ प्रोष्ठिल, १० वेहल्ल के उल्लेख मिलते हैं।
इनमें धन्य, सुनक्षत्र और ऋषिदास ये तीन ही नाम ऐसे हैं, जिनका उल्लेख ठाणांग और अणुत्तरोववाइय दोनों में है।
अणुत्तरोववाइय किसे कहते हैं, इसका उल्लेख समवायांग सटीक सूत्र १४४ ( पत्र २३५-२, भावनगर ) में आता है। इनमें लिखा है कि, जो लोग मरकर अणुत्तरलोक तक जाने वाले हैं और पुनः जन्म लेने के बाद जो सिद्ध होनेवाले हैं, ऐसे लोगों का उल्लेख अणुत्तरोववाइय में है । और ठाणांग की टीका में अभययदेवसूरि ने कहा है"परमनुत्तरोपपातिकाङ्गे नाधीतः क्वचित्सिद्धश्च श्रयते"
(पत्र ५१०-२) भरतेश्वरबाहुबलिचरित्र में भी लिखा है कि, दशार्गभद्र मर कर मुक्त हुआ। "क्रमाकर्मक्षयं कृत्वा दशार्णभद्रो मुक्तिं ययौ ॥
(प्रथम भाग, पत्र ११६-२) पर, ठाणांग में अणुत्तरोवाइय के प्रसंग में दशार्णभद्र का उल्लेख होने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org