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भक्त राजे
मन में दशार्ण के विमान बनाया ।
उसका गर्व देखकर इन्द्र के गर्वहरण की इच्छा हुई । अतः इन्द्र ने जलमय एक उसे नाना प्रकार के स्फटिक आदि मणियों से सुशोभित कराया । उस विमान में कमल आदि पुष्प खिले थे और तरह-तरह के पक्षी बोल रहे थे । उस विमान में बैठकर इन्द्र अपने देवसमुदाय के साथ समवसरण की ओर चला ।
पृथ्वी पर पहुँचकर इन्द्र अति सज्जित ऐरावत हाथी पर बैठ कर देवदेवियों के साथ समवसरण में आया ।
इन्द्र की इस ऋद्धि को देखकर दशार्ण के मन में अपनी ऋद्धि-समृद्धि क्षीण लगने लगी और ( अविलम्ब भगवान् के पास जाकर ) उसने अपने वस्त्राभूषण उतार कर दीक्षा ले ली ।
दशार्णभद्र को दीक्षा लेते देखकर इन्द्र को लगा कि, जैसे वह पराजित हो गया है और दशार्णभद्र के पास जाकर उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करके इन्द्र लौट गया ।
उसके बाद दशार्णभद्र ने भगवान् के साथ रहकर धर्म का अध्ययन किया और साधु व्रत पालन किया ।
दशार्णभद्र की यह कथा त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग १०; उत्तराध्ययन टीका अ० १८; भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति, ऋषिमंडल वृत्ति आदि ग्रंथों में आती है ।
ठाणांगसूत्र में आता है
अणुत्तरोववातिय दसाणं दस अज्झयणा पं तं०ईसिदास य १ धरणे त २, सुणक्खत्ते य ३, कातिते ४ । सट्टा ५, सालिभद्दे त ६, आणंदे ७, तेतली ८ ॥ १ ॥ दसन्नभद्द अतिमुत्ते १० एमेते दस श्रहिया । ......
( पत्र ५०६ - १ )
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