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तीर्थङ्कर महावीर
दशार्णभद्र
भगवान् महावीर के काल में दशार्णपुर में दशार्णभद्र नामका राजा राज्य करता था । उसे एक दिन उसके चरपुरुष ने आकर सूचित किया कि कल प्रातःकाल आपके नगर के बाहर भगवान् महावीर पधारने वाले हैं।
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चर की बात सुनकर दशार्णभद्र बड़ा प्रफुल्लित हुआ और उसने अपनी सभा के समक्ष कहा- " कल प्रातः मैं प्रभु की वंदना ऐसी समृद्धि से करना चाहता हूँ, कि जिस समृद्धि से किसी ने भी वंदना न की हो । "
उसके बाद वह अपने अंतःपुर में गया । अपनी रानियों से भी प्रभु की वंदना करने की बात कही । दशार्णभद्र पूरी रात चिन्ता में पड़ा रहा और सूर्योदय से पूर्व ही नगर के अध्यक्ष को बुलाकर नगर सजाने की आज्ञा उसने दी ।
नगर ऐसा सजा जैसे कि वह स्वर्ग का एक खण्ड हो । नगर सज जाने की सूचना मिलने के बाद राजा ने स्नान किया, अंगराग लगाया, पुष्पों की मालाएँ पहनी, उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणों से अलंकृत हुआ और हाथी पर बैठकर प्रभु के समवसरण की ओर पूरी ऋद्धि से चला |
१ - दसण्णरज्जं मुइयं, चइत्ताणं
मुणीचरे । दसण्णभद्दो निक्खतो, सक्खं सक्केण चोइयो || - उत्तराध्ययन, शान्त्याचार्य की टीका सहित, अध्ययन १८, श्लोक ४४, पत्र ४४७-२
दशार्णभद्रो दशार्णपुर नगरवासी विश्वंभराविभुः यो भगवन्तं महावीरं दशार्णकूटनगर निकट समवसृतमुद्यान -ठाणांगसूत्र सटीक पत्र ४८३-२
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